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दुनिया में तेल की जंग और गिरते दाम

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 21 2016 12:48PM | Updated Date: Apr 21 2016 12:48PM
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-निरंकार सिंह
विश्लेषक


दुनिया में कच्चे तेल की मांग से अधिक उत्पादन के कारण उसकी कीमतें काफी गिर गई हैं। तेल का सबसे बड़ा खरीददारी अमेरिका अब खुले तेल का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनने वाला है। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में निर्णायक बदलाव आ सकता है। यनि मौजूदा रूझान कायम रहे तो साल 2020 तक तेल उत्पादन के मामले में सऊदी अरब को अमेरिका पीछे कर देगा। फिलहाल सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। अगर ऐसे में यह बदलाव होता है तो दुनिया भर में न सिर्फ ऊर्जा की तस्वीर बदलेगी, बल्कि भू-राजनीति में व्यापक बदलाव भी आएगा। एक नए ऊर्जा परिदृश्य का वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा संस्थान ने अपनी सालाना रिपोर्ट ‘वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक’ में कहा है कि ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिकी उत्पादन व खपत में बदलाव से दुनिया में एक नई तस्वीर बन रही है। जिस तरह से अमेरिका का तेल उत्पादन बढ़ता जा रहा है, उससे यह साफ होता है कि साल 2020 तक अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश हो जाएगा। निश्चित तौर पर इसका श्रेय हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग को जाता है। हारिजेंटल ड्रिलिंग से भी कामयाबी मिली है। समुद्र की गहराई में तेल के जो अकूत भंडार थे, उनका दोहन नामुमकिन सा था। लेकिन नई वैज्ञानिक युक्तियों ने आॅयल शैल व शैल गैस के रूप में मौजूद हाइड्रो कार्बन भंडारों को निकालने की राह दिखाई है।

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2020 में अमेरिका हर रोज 11.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल का उत्पादन करेगा। गौरतलब है कि वह पिछले साल तक 8.1 मिलियन बैरल रोज तेल का उत्पादन करता था। इन सबके बीच अमेरिका तेल की खपत में कटौती भी कर रहा है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 की पहली छमाही में अमेरिका ने अपनी ऊर्जा जरूरतों में 17 फीसदी की कटौती की है। कच्चे तेल के आयात में भी 11 फीसदी की कमी आई है। यकीनन, अमेरिकी सरकार की ऊर्जा बचत नीति काम कर रही है और ओबामा प्रशासन ने इसके संकेत दिए हैं कि भविष्य में ऐसी नीतियां और बनेगी। कुलजमा यह संभव है कि 2030 तक उत्तरी अमेरिका पूरी तरह से तेल निर्यातक महाद्वीप बन जाए।

संयुक्त अरब अमीरात के तेल मंत्री सुहेल अल मजरूई ने तेल की कीमतों में आई भारी गिरावट के लिए ओपेक से बाहर के तेल उत्पादकदेशों को जिम्मेदार ठहराया है। ओपेक पेट्रोलियम निर्यात करने वाले 12 देशों का संगठन है। मजरूई ने कहा कि इन देशों ने गैर जिम्मेदाराना तरीके से अधिक तेल उत्पादन किया। पिछले कुछ महीनों में कच्चे तेल के दाम लगातार गिरे हैं और इनमें 40 प्रतिशत तक की कमी आई है। तेल की कीमत स्थिर हो सकती है, बशर्ते तेल उत्पादक देश  के उत्पादन में इजाफा न करें। सऊदी अरब के तेल मंत्री अल नईमी ने कहा कि वर्तमान अस्थिरता को हल करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि सबसे कुशल उत्पादकों को तेल उत्पाद करने दिया जाए। ओपेक में सबसे मजबूत स्थिति में माने जाने वाले सऊदी अरब का कहना है कि तेल कीमतें बढ़ाने के लिए उत्पाद में कटौती की जानी चाहिए, हालांकि ईरान और रूस ने तेल उत्पादन में कमी लाने की अपील की थी। लेकिन अमेरिका ने अपना तेल उत्पादन बढ़ा दिया है। वह नहीं चाहता कि तेल पर आधारित रूस की अर्थव्यवस्था मजबूत हो। बहरहाल अभी तेल उत्पादक देशों  में प्रतिस्पर्धा जारी रहेगी और तेल के दाम नहीं बढ़ेंगे। बहरहाल, किसी भी चीज के मूल्य में असाधारण कमी आगे चलकर अर्थतंत्र को झकझोरती जरूर है। खाड़ी के ज्यादातर मुल्कों का जीना-मरना तेल पर ही निर्भर करता है, और हमारे निर्यात का एक तिहाई हिस्सा इन्हीं देशों में जाता है। हकीकत का यह दूसरा पहलू हमारे घटते निर्यात से जाहिर हो रहा है। तेल की कीमतें आगे और गिरीं तो कुछ तेल उत्पादक  देशों के दिवालिया होने का भी खतरा है। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। भारत की ओएनजीसी घाटे में जा सकती है। तेल शोधन और इसकी मार्केटिंग में लगी कंपनियों का कारोबार भी गड़बड़ा सकता है। हमें सस्ते तेल का लाभ उठाना चाहिए लेकिन आगे के खतरों के लिए तैयार भी रहना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा हालांकि भारतीय उपभोक्ताओं को कम हो रहा है क्योंकि केंद्र व राज्य सरकारें इस पर अलग-अलग टैक्स लगाकर अपना खजाना भर रही हैं। पेट्रोल की कीमत इस समय 21 रुपए प्रति लीटर के आसपास है। पर सरकारें  इस पर उपभोक्ताओं से 45 रुपए टैक्स वसूल रही है। नवंबर 2014 से लेकर अब तक कच्चे तेल की कीमतें लगभग 56 फीसदी सस्ती हो चुकी हैं। लेकिन पेट्रोल सिर्फ साढ़े सात फीसदी और डीजल 15.5 फीसदी सस्ता हुआ। उम्मीद की जा रही है कि ईरान का तेल बाजार में आने से पहले ओपेक तेल की कीमत गिराकर 25 डॉलर प्रति बैरल तक भी पहुंच सकती है। अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा ईरान पर प्रतिबंध हटाने का सीधा लाभ भारत को मिलेगा। क्योंकि ईरान से कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीददार भारत है।
 

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