26 Apr 2024, 22:55:34 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

रामदास ने कड़े परिश्रम से अपने खेत को एक खूबसूरत बाग में बदल दिया था। एक दिन जब वह बाग में पहुंचा तो देखा कि एक बाबा पेड़ पर चढ़कर फल खा रहा है। रामदास ने उससे कहा-'बाबा, आप इस तरह फल तोड़कर क्यों खा रहे हैं? यदि आपको फल चाहिए ही थे तो मुझसे पूछकर लेते।' यह सुनकर बाबा बोला- 'मुझे किसी से पूछने की जरूरत नहीं बच्चा। ये सारा संसार परमात्मा ने बनाया है। यह बगीचा और इसमें लगे पेड़-पौधे व फल भी उसी के हैं। मैं परमात्मा का सेवक हूं। इस नाते इन फलों पर मेरा भी हक है।'
 
 
रामदास ने कहा-'परमात्मा का सेवक तो मैं भी हूं। पर इस तरह गलत काम नहीं करता। आप तो चोरी कर रहे हैं। आप मेरे फल चुराकर खा रहे हैं।' यह सुनकर बाबा गुस्से में बोला-'चुप कर अधर्मी। मुझे चोर कहता है। अरे पापी, क्यों मुझ पर यूं लांछन लगा रहा है?' रामदास समझ गया कि वह बाबा के वेश में कोई ढोंगी है। उसने उसे सबक सिखाने की ठान ली। फल खाने के बाद जैसे ही बाबा पेड़ से नीचे उतरा, रामदास ने एक रस्सी लेकर उसे तने से बांध दिया और फिर एक डंडा उठाकर उसकी पिटाई शुरू कर दी।
 
 
ढोंगी बाबा चीखने-चिल्लाने लगा-'मुझे इतनी बेदर्दी से पीटते हुए तुझे लज्जा नहीं आती? क्या तुझे परमात्मा का तनिक भी खौफ नहीं?' रामदास बोला-'मैं क्यों डरूं? यह बगीचा, यह लाठी और मेरे हाथ सब कुछ परमात्मा की ही तो मिल्कियत है। समझ लो कि मैं जो कर रहा हूं, वह परमात्मा की इच्छा है।' यह सुनकर उस ढोंगी बाबा ने रामदास से अपने बर्ताव के लिए क्षमा मांगी और फिर कभी ऐसा न करने का प्रण लिया।
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