26 Apr 2024, 22:49:40 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

अवंतिका देश का राजा रवि सिंह महात्मा आशुतोष पर बड़ी ही श्रद्धा रखता था। वह उनसे मिलने रोज कुटिया में जाता था। लेकिन हर बार जब महात्मा को राजा अपने महल में आने के लिए आमंत्रित करता, महात्मा मना कर देते। एक दिन राजा रवि सिंह ने जिद पकड़ ली। तब महात्मा ने कहा, 'मुझे तुम्हारे महल में दुर्गंध महसूस होती है।' रवि सिंह अपने महल लौट आए लेकिन काफी देर तक महात्मा की बातों पर विचार करते रहे।कुछ दिनों बाद जब राजा फिर से महात्मा के पास पहुंचे तो महात्मा राजा को पास के ही गांव में घुमाने ले गए। दोनों जंगल को पार करते हुए एक गांव में पहुंचे। उस गांव में कई पशु थे। उनके चमड़े के कारण दुर्गंध आ रही थी। जब दुर्गंध सहन करने योग्य नहीं रह गई तो राजा ने महात्मा से कहा, 'चलिए महात्मा यहां से, मुझसे ये दुर्गंध बर्दाश्त नहीं होती।' तब महात्मा ने कहा, 'यहां सभी हैं लेकिन दुर्गंध आप को ही आ रही है।' राजा ने कहा, 'ये लोग इसके आदी हो चुके हैं मैं नहीं।' तब महात्मा ने कहा, 'राजन! यही हाल तुम्हारे महल का है। जहां भोग और विषय की गंध फैली रहती है। तुम इसके आदी हो चुके हो। लेकिन मुझे वहां जाने की कल्पना से ही कष्ट होने लगता है।' जब हम अपनी जिंदगी में किसी वातावरण, व्यवहार के आदी हो जाते हैं। तो उसकी भली-भांति परीक्षा करने की क्षमता खो देते हैं। हमारी दृष्टि संकुचित हो जाती है। इसलिए जब तक वातावरण से दूर होकर विचार, कर्म और जीवन की गतिविधियों का चिंतन नहीं किया जाता तब तक हमें सही और गलत का ज्ञान नहीं होता है।

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