26 Apr 2024, 20:46:26 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

एक दिन सुबह के समय परमहंस देव अपने शिष्यों के साथ टहल रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि पास ही कुछ मछुआरे जाल फेंक कर मछलियां पकड़ रहे हैं। वह अचानक एक मछुआरे के पास पहुंचकर खड़े हो गए और अपने शिष्यों से बोले, 'तुम लोग इस जाल में फंसी मछलियों की गतिविधियां गौर से देखो।' शिष्यों ने देखा कि कुछ मछलियां ऐसी हैं जो जाल में निश्चल पड़ी हैं। वे निकलने की कोई कोशिश भी नहीं कर रही हैं, जबकि कुछ मछलियां जाल से निकलने की कोशिश करती रहीं। हालांकि, उनमें कुछ को सफलता नहीं मिली, लेकिन कुछ जाल से मुक्त होकर फिर से जल में खेलने में मगन हैं।

 
 
जब परमहंस ने देखा कि शिष्य मछलियों को देखने में मगन होकर दूर निकल गए हैं, तो फिर उन्हें अपने पास बुला लिया। शिष्य आ गए तो कहा, 'जिस प्रकार मछलियां मुख्यत: तीन प्रकार की होती हैं, वैसे ही अधिकतर मनुष्य भी तीन प्रकार के होते हैं। एक श्रेणी उन मनुष्यों की होती है, जिनकी आत्मा ने बंधन स्वीकार कर लिया है। अब वे इस भव-बंधन के जाल से निकलने की बात ही नहीं सोचते। दूसरी श्रेणी ऐसे व्यक्तियों की है, जो वीरों की तरह प्रयत्न तो करते हैं पर मुक्ति से वंचित रहते हैं। तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जो प्रयत्न द्वारा अंतत: मुक्ति पा ही लेते हैं, लेकिन दोनों में एक श्रेणी और होती है जो खुद को बचाए रहती है।
 
 
'एक शिष्य ने पूछा, 'गुरुदेव, वह श्रेणी कैसी है?' परमहंस देव बोले, 'हां, वह बड़ी महत्वपूर्ण है। इस श्रेणी के मनुष्य उन मछलियों के समान हैं जो जाल के निकट कभी नहीं आतीं और जब वे निकट ही नहीं आतीं, तो उनके फंसने  का प्रश्न ही नहीं उठता।'
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