एक धर्मगुरु के तीन पुत्र थे। दुर्भाग्य से एक समय ऐसा आया कि वे तीनों एक दिन महामारी की चपेट में आ गए। अच्छी देखरेख व दवा के अभाव में वे जीवित न रह सके। धर्मगुरु किसी काम से बाहर गए हुए थे। शाम के समय जब वे घर आए तो उन्हें बच्चे दिखाई नहीं दिए। उन्होंने सोचा, शायद सो गए होंगे। उन्होंने पूछा,'क्या बात है, आज बच्चे जल्दी क्यों सो गए?' पत्नी ने उनकी इस बात का उत्तर दिए बिना उनसे कहा,'स्वामी! कल हमने पड़ोसी से जो बर्तन लिए थे, उन्हें मांगने के लिए पड़ोसी आ गए थे।'
धर्मगुरु ने कहा,'बर्तन उनके थे, इसीलिए वे लेने को आए थे। पराई वस्तु का मोह हम क्यों करें?' पत्नी कहा,'आप बिलकुल ठीक कहते हैं। मैंने उन्हें वे बर्तन लौटा दिए। उन्हें फिर बच्चों की याद आ गई। उन्होंने पत्नी से उनके बारे में पूछताछ शुरू कर दी। तब पत्नी उन्हें भीतर के कमरे में लेकर गई। वहां उसने चारपाई के नीचे रखे तीनों बच्चों के शव दिखा दिए। यह देखते ही वे रोने लगे।
तब पत्नी उनसे बोली, आप अभी-अभी तो मुझसे कह रहे थे कि यदि कोई अपनी वस्तु वापस लेना चाहे, तो हमें वह वस्तु लौटा देनी चाहिए और उसके लिए दु:ख भी नहीं करना चाहिए। लेकिन आप यह भूल रहे हैं। बच्चे भगवान के यहां से आए थे, सो उन्होंने ले लिए। फिर हम उनके लिए क्यों बेवजह शोक करें?' इन शब्दों से संत का चित्त कुछ हलका हो गया और वे अपने ईश्वर की आराधाना में लीन हो गए।