08 May 2024, 08:40:00 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

एक गांव में एक साधु भिक्षा लेने के लिए गए। घर-घर घूमते रहे, पर कुछ न मिला। आखिरकार वे पानी पीकर नदी के किनारे विश्राम करने लगे। नींद खुलते ही फिर सफर शुरू कर दिया। थोड़ी दूर जाकर उन्हें एक कुटिया में एक बुढ़िया नजर आई। उसके घर में आटे का धोवन

था। बहुत मांगने पर भी उसने नहीं दिया। साधु अपने आचार्य के पास लौट आए। साधु ने कहा- 'साफ जल बहुत है, पर मिल नहीं रहा है।' भिक्षु- 'क्यों? क्या वह बहन देना नहीं चाहती?' साधु- 'वह जो देना चाहती है, वह आपको ग्राह्य नहीं है और जो ग्राह्य है, उसे वह देना नहीं चाहती।'
 
 
भिक्षु- 'उसे धोवन देने में क्या आपत्ति है?' साधु- 'वह कहती है, आदमी जैसा देता है, वैसा ही पाता है। आटे का धोवन दूंगी तो मुझे आगे वही मिलेगा। आप मिठाई ले जाएं, मेरे जीवन में मिठास भरें। ये पानी तो पीने योग्य नहीं है, आप साफ पानी और मिठाई ले जाएं। मैं आपको खाली हाथ नहीं भेजना चाहती। 'यह सुनते ही आचार्य भिक्षु उठे और साधुओं को साथ लेकर उसी बुढ़िया के घर गए। धोवन मांगने पर उसने वही उत्तर दिया जो वह पहले दे चुकी थी।
 
 
भिक्षु- 'बहन, तेरे घर में कोई गाय है?' बहन- 'हां महाराज है।' भिक्षु- 'तू उसे क्या खिलाती है?' बहन- 'चारा, घास।' भिक्षु- 'वह क्या देती है?' बहन- 'दूध।' भिक्षु- 'तब बहन, जैसा देती है, वैसा कहां मिलता है? घास के बदले दूध मिलता है।' सुनते ही बुढ़िया ने जल का पात्र उठाकर सारा
जल साधुओं के पात्र में उड़ेल दिया। इस जगत में अनेक कलाएं हैं, लेकिन इन कलाओं में सबसे बड़ी कला है दूसरों के हृदय को छू लेना।
 
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