27 Apr 2024, 00:05:57 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को कोलकाता के एक सेठ महादेव प्रसाद मतवाला बहुत मानते थे। वे उनकी हर सुख-सुविधा का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। एक दिन उन्होंने निरालाजी को बेहद कीमती व गरम दुलाई भेंट की। एक दिन कड़ाके की सर्दी में वे दुलाई ओढ़ कर सेठजी के दफ्तर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक भिखारी ठिठुरता हुआ दिखाई दिया। उन्होंने तुरंत वह दुलाई भिखारी को ओढ़ा दी।

भिखारी बेहद खुश होकर निरालाजी को अनेक आशीष देने लगा। यह सारा नजारा मतवाला प्रेस का एक कर्मचारी देख रहा था। उसने सारी बात अपने मालिक को बताई। सेठजी तुरंत बाहर आए और देखा वही दुलाई एक भिखारी ओढ़े बैठा है। वह निरालाजी से बोले, ‘यह आपने क्या किया? इतनी महंगी दुलाई एक भिखारी को दान में दे दी?’

सेठजी की बात सुनकर निरालाजी बोले, ‘आप जैसे महानुभाव के होते हुए दुलाई तो फिर आ जाएगी, लेकिन यदि सर्दी से ठिठुरते हुए इस भिखारी की जान चली गई तो वह कभी वापस नहीं आ पाएगी। उसका पाप मुझे भी लगेगा कि मैंने देखकर भी एक जरूरतमंद की मदद नहीं की। मदद करने से पहले मदद की भावना का विकास होना जरूरी है। मैं तो खुद में यही भावना विकसित करने का प्रयास कर रहा था।' यह सुन सेठजी ने दूसरे भिखारियों को भी गर्म कपड़े दान किए।

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