26 Apr 2024, 12:47:03 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

एक बालक नित्य विद्यालय पढ़ने जाता था। एक दिन दरवाजे पर किसी ने -आवाज लगाई तो बालक हाथ में पुस्तक पकड़े हुए द्वार पर गया, देखा कि एक फटेहाल बुढ़िया कांपते हाथ फैलाए खड़ी थी। उसने कहा, 'बेटा! कुछ भीख दे दे।' बेटा भावुक हो गया और मां से आकर कहने लगा, 'मां! एक बेचारी गरीब मां मुझे बेटा कहकर कुछ मांग रही है।'

उस समय घर में कुछ खाने की चीज थी नहीं, इसलिए मां ने कहा, 'बेटा! रोटी-भात तो कुछ बचा नहीं है, चाहे तो चावल दे दो।'  पर बालक ने हठ करते हुए कहा - 'मां! चावल से क्या होगा? तुम जो अपने हाथ में सोने का कंगन पहने हो, वही दे दो न उस बेचारी को। मैं जब बड़ा होकर कमाऊंगा तो तुम्हें दो कंगन बनवा दूंगा।'

मां ने बालक का मन रखने के लिए सच में ही सोने का अपना वह कंगन कलाई से उतारा और कहा, 'लो, दे दो।' बालक खुशी-खुशी वह कंगन उस भिखारिन को दे आया। एक दिन वह मां से बोला, 'मां! अपने हाथ का नाप दे दो, मैं कंगन बनवा दूं।' उसे बचपन का वचन याद था। पर माता ने कहा, 'उसकी चिंता छोड़। मैं बूढ़ी हो गई हूं कि अब मुझे कंगन शोभा नहीं देंगे। हां, कलकत्ते के तमाम गरीब बालक विद्यालय और चिकित्सा के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उनके लिए तू एक विद्यालय और एक चिकित्सालय खुलवा दे।' मां के उस पुत्र का नाम ईश्वरचंद्र विद्यासागर।

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