आधुनिक युग में मोबाइल के बिना किसी भी व्यक्ति का काम चलना मुश्किल हो गया है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि, मोबाइल के उपयोग से शरीर का पानी सूख जाता है। मोबाइल में उपस्थित रेडिएशन शरीर के पानी को सोखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि, मानव शरीर में 70 फीसदी पानी होता है, ऐसे में जब ये पानी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के प्रभाव में आता है तो यह शरीर के पानी का अवशोषण कर लेता है।
ऐसे समझें
जब खाने को माइक्रोवेव या ओवन में पकाया जाता है तो सबसे पहले खाने का पानी सूखता है। मानव शरीर से भी लगभग इसी तरह से पानी का अवशोषण रेडिएशन के माध्यम से होता है। उनका कहना है कि इसका विपरीत असर शरीर के अन्य अंगों में भी होता है। खासकर ऐसे अंग और दिमाग पर इसका प्रभाव होता है जहां द्रव की मात्रा अधिक होती है।
बायोलॉजिकल सिस्टम के बिगड़ने का खतरा
शरीर में द्रव की मात्रा का असंतुलन की स्थिति होने से कई बीमारियां पैदा होने लगती हैं। डॉक्टरों का कहना है कि पश्चिमी देशों में हुए शोध में भी इस बात की पुष्टि हई है। मोबाइल लोगों में नपुंसकता की भी एक वजह बनता है, साथ ही इसके गर्म होने से भी विभिन्न प्रकार का आघात पहुंचता है। मोबाइल के बेतहाशा उपयोग से विद्युत चुंबकीय क्षेत्र फ्री रेडिकल की संख्या में इजाफा करता है, जिससे बायोलाजिकल सिस्टम के बिगड़ने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
दोस्त नहीं है यह दुश्मन
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार मोबाइल दोस्त व दुश्मन दोनों की भूमिका बराबर निभाता है। आधुनिक युग में मोबाइल जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। इसके माध्यम से सारे संसार से लोग जुड़े रहते हैं, इस तरह यह एक दोस्त की भूमिका निभाता है। वहीं इससे होने वाली बीमारियां इसे दोस्त की जगह दुश्मन की संज्ञा देने पर मजबूर करता है।
दिमाग पर पड़ता है असर
हिप्पोकैम्पस: यह दिमाग का खास हिस्सा है, यह याद्दाश्त व दिशा-निर्देशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
असर: इससे इमेज बिल्डिंग क्षमता पर असर पड़ता है, जिससे देर तक याद रखने में मुश्किल होती है।
एमिगडाला: इसे ब्र्रेन प्लेजर सेंटर भी कहते हैं।
असर: इनसोम्निया (भूलने की बीमारी) , डिस्ट्रैक्शन (ध्यान भंग होना) जैसी बीमारी होने की संभावना बढ़ती है।
ब्रेन स्टेम: यह हिस्सा तुरंत निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। शरीर की सभी नसों का संपर्क यहीं से होता है।
असर: तुरंत निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
फ्रंटल लोब: फ्रंटल लोब यानि सामने का हिस्सा, यह सभी कामों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाता है।
असर: इससे हमारे फैसले, समझ व व्यवहार पर भी नकारात्मक असर डालता है।
टेंपोरल लोब: यह हिस्सा कान के नजदीक होता है और याद्दाश्त, रिकॉल आदि को नियंत्रित
करता है।
असर: स्मार्टफोन के इस्तेमाल से बहुत सी चीजें और बातें लंबे समय तक याद नहीं रहती।
इस तरह का होता है असर
1- स्पर्म में 30 फीसदी तक की कमी आ सकती है।
2- ज्यादा इस्तेमाल से ब्रेन का कैंसर का खतरा भी कई गुना तक बढ़
जाता है।
3- रेडियो फ्रीक्वेंसी से डीएनए के नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है।
4- नई कोशिका बनना बंद हो सकता है।
5- सेल फोन के टॉवर से निकलने वाले रेडिएशन से युवाओं के सिर पर 25 फीसदी, 10 से 5 साल तक के बच्चों के सिर को 50 फीसदी और 5 से कम उम्र के बच्चों के सिर को यह 75 फीसदी तक प्रभावित करता है।
6- सिर में दर्द, अनिद्रा व बचचों में ल्युकेमिया की संभावना बढ़ जाती है।
7- इनके अतिरिक्त अल्जाइमर जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।