-जावेद अनीस
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
मानव सभ्यता का विकास पानी के बिना असंभव था, विश्व की सभी प्रमुख सभ्यताएं नदियों और समुद्र तटों पर ही परवान चढ़ी हैं। चाहे महान नील नदी के किनारे प्राचीन मिस्र की सभ्यता हो या टिगरिस और सिंधु नदी घाटी की मेसोपोटामिया और मोहनजोदड़ो व हड़प्पा की सभ्यताएं। इन सबके बावजूद हम पानी और इसके स्रोतों के महत्व को समझने में नाकाम रहे हैं। हमने अपनी पृथ्वी को ‘नीले ग्रह’ का नाम दिया हुआ हैं क्योंकि इसके दो तिहाई भाग में केवल पानी ही है लेकिन इस पानी का मात्र 2.7 प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग के लायक है बाकी 97.3 प्रतिशत खारा पानी है। यह 2.7 प्रतिशत पानी भी कम नहीं है फिर भी आज पूरी दुनिया में पानी एक प्रमुख समस्या बन कर उभरी है। पूरी दुनिया में अविवेकपूर्ण भूजल दोहन से भूजलस्तर में तेजी से कमी आई है और वे दूषित हो चुके हैं। हमारे देश के कई हिस्सों में भी भू-जल बहुत तेजी से नीचे गिरा रहा है और पानी की समस्या दिनोंदिन गहराती जा रही है। भारत की अधिकतर आबादी पेयजल के गंभीर संकट से गुजर रही है। केंद्रीय जल आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश के 91 बड़े जलाशयों का स्तर खतरनाक हद तक नीचे आ चुका है और यहां मात्र 23 प्रतिशत पानी बचा है, यह संकट हमारा खुद का पैदा किया हुआ हैं तभी तो समुद्र से घिरे और नदियों से पटे होने के बावजूद यह स्थिति बन गई है जो की एक आपात स्थिति है।
हमेशा की तरह इस आपात स्थिति के सबसे गंभीर शिकार गरीब और पिछड़े इलाकों के लोग ही हैं, देश के ग्रामीण हिस्सों में हमारी 18.2 फीसदी आबादी पोखरों, तालाबों और झीलों पर निर्भर हैं जो बड़ी तेजी से दूषित हो रहे हैं,इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में झुग्गी बस्ती और छोटी कालोनियों में रहने वाली बड़ी आबादी साफ पानी से महरूम हैं। भारत उन चंद देशों में शामिल है जहां डायरिया जैसी जल जनित बीमारियों से सबसे ज्यादा बच्चों की मौत होती है। देश के कई हिस्सों में जिस स्तर का जल संकट देखने को मिल रहा है वह परेशान कर देने वाला हैं, महाराष्ट्र के लातूर में पानी की समस्या पूरी दुनिया में सुर्खिया बटोर रही है जहां पानी को लेकर हिंसा और विवाद की घटनाएं इतनी गंभीर हो गई हैं कि स्थानीय प्रशासन को धारा 144 लगाना पड़ा है और ट्रेन के जरिए पानी पहुंचाया गया है। बुंदेलखंड से खबरें आ रही हैं कि वहां सूखे के कारण लोग कीचड़ से पानी निकाल कर पीने को मजबूर हैं। पन्ना जिले के एक गावं ‘खजरी कुडार’ में जल संकट के कारण पिछले 1 माह में लगभग 100 गायों ने दम तोड़ दिया है, यहां ग्राम पंचायत रमखिरिया के राजापुर गावं में लोग नालों और झिरियों के गंदे पानी पीने को मजबूर हैं।
दमोह जिले के कारीबरा गांव में लोगों को 10 किमी का सफर तय करके एक दूसरे गावं से पानी लाना पड़ रहा है। मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले के गावं टिकरा टोला भंवरखंडी में पानी की स्थिति इतनी विकराल है कि यहां महिलाएं कुएं में उतरकर चम्मच से पानी भरते हुए देखी जा रही हैं, धार जिले के भमोरी गावं में महिलाएं एक पुराने कुएं के तल में बचे पानी के लिए 40 फीट नीचे रस्सी के सहारे उतरने को मजबूर हैं। इन सबके बीच हमारी सरकारें और नेता वही कर रहे हैं जिसके लिए वे जाने जाते हैं, मध्यप्रदेश की पीएचई मंत्री कुसुम महदेले विधानसभा में पानी के मुद्दे पर हुई चर्चा के दौरान जवाब देती हैं कि ‘ तीन साल से बारिश नहीं हो रही है तो पानी कहां से आएगा,पानी बरसाना तो सरकार का काम नहीं है।’ ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश सरकार की प्राथमिकता में लोक नहीं धर्म की सेवा है और इन सबसे आंखे मूंद कर पूरा अमला सिंहस्थ के आयोजन में व्यस्त है। सूखाग्रस्त महाराष्ट्र में तथाकथित जनप्रतिनिधियों का क्रूरतम आचरण देखने को मिल रहा है।
दरअसल हमारे देश में पानी की तिहरी समस्या है, एक तरफ भूजलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है और जल संरक्षण की व्यवस्था बहुत कमजोर है, वही उदारीकरण के बाद से पानी को एक कमोडटी यानी खरीदने-बेचने की एक वस्तु बना दिया गया है जिसके साथ मुनाफे का गणित नत्थी है। जहां एक बड़ी आबादी को परंपरागत रूप से पानी से अलग रखा गया है। हमने जिस तरह से पानी का दोहन किया है और जल संरक्षण का कोई ध्यान नहीं रखा उसने हमें यहां पहुंचा दिया है लेकिन इधर जिस तरह पानी को खरीद-फरोख़्त की वस्तु बना दिया गया है उससे मामला और बिगड़ा है। इसके भी दो पहलु हैं पहला यह कि उद्योगपतियों को औने-पौने दामों पर या लगभग मुफ्त पानी के दोहन की आजादी मिली हुई है यानी जो पानी सामूहिक मतलब पूरे समाज का है उसे एक या कुछ व्यक्तियों को सौप दिया गया और जो इसका इस्तेमाल बहुत ही निर्ममता से करते हैं और इससे संकट पैदा हुआ हैं, संकट पैदा करने के बाद कंपनियां पानी बेच कर इसी संकट से मुनाफा कूटती हैं।
यानी पहले खुद संकट पैदा करो फिर उसी संकट से मुनाफा कमाओ। हम ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां पानी का भी बाजारीकरण हो चूका है। यह अरबों रुपए का खेल है और इस खेल में देश-दुनिया के बड़े ताकतवर लोग शामिल है। इसका कोई कारण नजर नहीं आता है कि आने वाले समय में यह धंधा और ना फूले-फले। पूंजीपति पानी को नीला सोना बता रहे हैं, दुनिया भर की कंपनियां पानी पर टूट पड़ी हैं, अब वे पानी को बोतल में भर कर मात्र बेचना नहीं चाहती हैं अब वे चाहती हैं कि सरकारें सेवाएं मुहैया कराने की अपनी भूमिका को सीमित करें और जल प्रबंधन और वितरण पर उनका नियंत्रित हो जाए। स्पष्ट है हमारे देश में जल संकट बहुआयामी है और इसे हल करने के लिए एक ‘इंडियन पानी लीग’ की शुरूआत करनी होगी जिसमें समाज और सरकारें मिलजुल खेलें और कुछ तात्कालिक कदम उठाए जैसे सबसे पहले तो आगे की क्षति बंद हो और निजीकरण की सोच को बाहर का रास्ता दिखाया जाए, ग्रामीण इलाकों में पुराने जलाशयों का पुनरोद्धार किया जाए, नए जलाशयों का निर्माण हो और पूरे देश में जल संरक्षण की उचित व्यवस्था की जाए। इन सबके साथ हमें थोड़ा सुधारना भी होगा।