29 Mar 2024, 21:23:41 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

पता नहीं कैसे वैवाहिक संबंधों की तलाश में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व तथा सर्वश्रेष्ठ पृष्ठभूमि की तलाश की जाती है। इतने ऊंचे मानदंड निर्धारित कर लिए जाते हैं जो प्राय: समाज में उपलब्ध नहीं होते। यह तलाश भावी वर व वधू दोनों की ही होती है, जिनमें परिवार भी बहुत सक्रियता से शामिल होते हैं।

अच्छे घर व परिवार के साथ-साथ युवक व युवतियों का व्यक्तित्व और सौंदर्य भी अद्भुत हो इसकी भी पूरी-पूरी संभावना टटोली जाती है। हमारे परिवारों में युवक-युवती के इस उम्र में पांव रखते ही माता-पिता और यहां तक कि नजदीकी आत्मीय रिश्तेदार भी उनके लिए भावी वर-वधू के नाम व काम तथा उनके परिवारों के बारे में पूरी जानकारी सप्लाय करने लगते हैं। इसमें एक तथाकथित अनजाना भय भी शामिल होता है कि कहीं परिवार का यह वैवाहिक उम्र का युवक का युवती कहीं अपनी पसंद की घोषणा न कर दं। यह तो प्राय: तय है कि परिवारों में माता-पिता यह सबसे बड़ा बिना कहे उत्तरदायित्व उठा लेते हैं या मान लेते हैं कि वही अपने बेटे व बेटी के लिए सर्वश्रेष्ठ जीवनसाथी चुन सकते हैं। उन्हें जरा भी यह विश्वास नहीं होता कि उनके बेटे व बेटियां उच्च शिक्षा व अच्छी-खासी नौकरी या व्यवसाय के बावजूद अपने लिए सही जीवनसाथी का चुनाव कर सकते हैं। इतनी सब आधुनिकता व अपने लिए मम्मी-पापा पाश्चात्य संबोधन प्रयुक्त होने के बावजूद भी यहां वह परंपराओं और तथाकथित रूढ़िवादी तौर-तरीका ही अपनाए हुए हैं। इस सर्वश्रेष्ठ की तलाश में वह कई युवतियों को नकार देते हैं और उन्हें जरा भी अहसास नहीं होता कि इस तरह नकारे जाने पर युवतियों और उनके परिवारों पर क्या बीतती है? क्या इसे अपने संस्कारों और महान रीतियों के पालन के अनुरूप माना जा सकता है? अपनी ही जाति व अपनी ही बिरादरी को महत्व देने वाले इसी संकीर्ण दायरे में अपने युवा बेटे-बेटियों का रिश्ता ढंूढ़ते हैं। इसे लेकर एक और बात ध्यान में आ रही है। आजकल वैवाहिक सम्मेलनों की बात बहुत प्रचलित है। हर जाति व समाज का अधिवेशन आयोजित किया जा रहा है। इसकी खबरें बनाई जाती हैं और बहुत अभिमान व गर्व से आयोजन कर्ता यह समाचार देते हैं कि इतनी संख्या में इस आयोजन में रिश्ते तय हो गए और मंच पर विवाह योग्य युवक व युवती ने पूरे आत्मविश्वास अपनी पसंद बताई। इसी के आधार पर रिश्ते तय हो गए। यह बात वहां तक तो सही व ठीक लगती है कि कम से कम किसी के घर जाकर युवती को नकार कर उसका अपमान करने की बात यहां नहीं उठती परंतु एक तथ्य तो सामने आता ही है कि यह जाति, बिरादरी तथा अपने ही समाज के वर्ग का ही आयोजन होता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि जातीय बंधन को ही बल मिलता है। यदि सर्व जातीय सम्मेलन अधिक संख्या में आयोजित किए जाएं तो अधिक अच्छा होगा इसके कारण एक तो वर-वधू के चुनाव का दायरा बढ़ेगा, दूसरे जातीय बंधन और बिरादरी की संर्कीण जड़ें  भी समाप्त हो सकती हैं। आज तब नौकरी और व्यवसाय के कारण उत्तर व दक्षिण तथा पूर्व और पश्चिम के युवा एक-दूसरे के सहयोगी हैं और निकट आ रहे हैं तब कब तब अपनी ही  जाति व बिरादरी की सीमाओं में बंधा रहा जा सकता है। हैरानी की बात तो यह है कि माता-पिता के अपनी ही जाति के अपनी ही समझ के अनुसार सर्वश्रेष्ठ रिश्तों को तय करने के बाद भी उनमें संबंध विच्छेद हो रहे हैं। ऐसा क्यों है? इसे जाति के संकीर्ण दायरे में रहने वाले गंभीरता से सोचें।

युवक व युवतियों के रिश्ते तय करते समय अपनी इच्छा व कल्पना को एक ओर कर अपनी ही शर्तें भी भुला दें। जाति, अपना समाज, अपनी बिरादरी के बाहर जाकर भी सर्वश्रेष्ठ चुनाव हो सकता है। यह कोई सब्जी-भाजी की तरह या अन्य किसी वस्तु को छांट-छांटकर लेने वाला बाजार नहीं है। यह एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति के जीवनभर साथ-साथ रहने का मामला है। युवाओं को भी छूट दें और स्वयं भी बहुत सपनों व उम्मीदों के दायरे से बाहर निकलें। यह सर्वश्रेष्ठ का चुनाव से कम किसी इंसानी रिश्ते तय करते समय संभव नहीं हो सकता।

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