26 Apr 2024, 22:49:20 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

दीपा करमाकर ने इतिहास रच दिया है। वह केवल 22 वर्ष की हैं, परंतु उन्होंने भारतीय युवतियों की सफलता का एक प्रकाश फैला दिया है। वह भारत की पहली महिला जिमनास्ट हैं, जिन्होंने दियो ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई कर लिया है। आर्टिस्टिक जिमनास्ट काफी कठिन होता है, इसमें जिमनास्टिक के करतब दिखाते हुए उसमें कलात्मकता भी शामिल करना होती है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में वह पहली भारतीय जिमनास्ट हैं।

ओलिंपिक्स के विभिन्न खेलों व जिमनेज्यिम के प्रदर्शन को देखते हुए हमेशा यह लगता था कि भारत जैसे इतने बड़े देश में क्या कोई भी एक युवक व युवती ऐसी नहीं है जो अपने शरीर के लचीलेपन से कई घुमावों को करके दिखा दे। यह बहुत कठिन  तो नहीं था पर, भारत में युवतियों की स्थिति को देखते हुए ऐसा कभी सोचा ही नहीं गया। उन्हें कोई खेल खेलने की या किसी खेल में अपना प्रदर्शन करने की ही छूट नहीं थी, तब ऐसे में जिमनेज्यिम अपनाना तो बहुत दूर की बात थी।

दीपा की यह राह आसान नहीं थी। उसकी पृष्ठभूमि में उसकी आर्थिक स्थिति बहुत बड़ी बाधा थी। उसके लिए एक भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को साबित कर सके। वह हर समय ऐसी परिस्थितियों से संघर्ष करने के बावजूद भी अपनी योग्यता सिद्ध कर सकी। इन सब विषम परिस्थितियों में उसके पिता ने उसे सदैव प्रोत्साहित व प्रेरित किया। उसके पिता वेट लिफ्टिंग के कोच हैं, पर उन्होेंने अपनी बेटी को जिमनास्टिक करने के लिए निरंतर उसका उत्साह बढ़ाया। यह समाज और आर्थिक स्थितियों से विपरीत धारा में तैरने के समान था, पर अभावों की इतनी संख्या होने के बावजूद दीपा और उसके पिता जुटे रहे और आज दीपा ने इसे खेल की प्रतिस्पर्धा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शामिल होने की अपनी योग्यता सिद्ध कर दी।

दीपा की इस सफलता ने आशा के कई दीयों की लौ प्रज्ज्वलित कर दी है। जब सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, ज्वाला गुट्टा, सिंधु जैसी युवतियों की बात होगी तो इसमें नाम लिए बिना भी इन नामों से भी यह जाहिर तो होता ही है कि यदि भारतीय युवतियों को अवसर मिलें तो वह खेलों के क्षेत्र में भी कई विधाओं में अपना कौशल व योग्यता दिखा सकती हैं। चौंकिए मत यदि यह कहा जाए तो सड़क पर आते-जाते आपने कई बार वह छोटी सी, दुबली-पुतली बच्ची तो देखी होगी जो माता-पिता द्वारा ढोल पीटे जाने पर दो बांसों के बीच बारीक रस्सी पर कलाबाजियां दिखाकर उलटी-सीधी होती रहती है। उसे संभालने के लिए तो नीचे बचाव करने वाला जाल भी बिछा नहीं होता। उसका गजब का संतुलन उसे बचाए रखता है या पेट की आग उसके करतबों में जान भर देती है। हमेशा उसके हैरतअंगेज करतबों को देखकर लगता रहा है कि काश! इसे कोई प्रशिक्षित करता तो वह कितनी अच्छी जिमनास्ट बन सकती थी। खैर! इस सफर की तो अभी शुरुआत भी नहीं हुई है, पर इनमें से भी यदि बच्चियों को चुना जाए तो वह भी गजब ढा सकती है।

दीपा की तुलना में वर्तमान में उस दीये (दीपक) से की जा सकती है जो अन्य लड़कियों के लिए कुछ करने की राह का प्रकाश बन सकती है। यह बहुत तेज रोशनी न सही पर, एक उजाला अवश्य है जो अब तक बने हुए अंधेरे में राह तो दिखा सकता है। जब-जब दीपा की बात होगी तब-तब उसके पिता की भी बात होगी और अपनी बेटी की इस सफलता में उनकी दी जाने वाले प्रेरणा की भी बात होगी तब क्या यह नहीं होगा कि उनका यह प्रयास बेटियों के पिताओं के लिए पथ प्रदर्शक बनें। यह कन्या शिशु भ्रूण हत्या को रोकने या उसे नहीं करने का भी संदेश देगी।

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