-नरेंद्रसिंह तोमर
लेखक भारत सरकार के इस्पात एवं खान मंत्री हैं।
भारत में समतामूलक समाज के पक्षधर, विश्वस्तर के विख्यात विधिवेत्ता, महान राजनेता, भारतीय संविधान के जनक, दलितों, वंचितों और महिला अधिकारों के समर्थक, मानवतावादी चिंतक, विचारक, दार्शनिक, और भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अपै्रल, 1891 को तत्कालीन मध्य प्रांत (वर्तमान मध्य प्रदेश) के महू जिले में एक दलित परिवार में हुआ था। वे अपने माता-पिता की 14 वीं संतान थे। 16 वर्ष की छोटी उम्र में मैट्रिक परीक्षा पास करते ही उनका विवाह रमाबाई नामक किशोरी से कर दिया गया। सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक, उनके पिता की इच्छा थी कि उनका बेटा उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज मे व्याप्त छुआछूत, जात-पांत और संकीर्णता जैसी कुरीतियों को दूर कर सके। डॉ. भीमराव बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे और अध्ययन में उनकी अगाध रूचि थी। 1912 में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1913 में वे बड़ौदा के महाराजा से छात्रवृत्ति पाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका चले गए। 1913 से 1917 तक अमरीका और इंग्लैंड में रहकर उन्होंने डॉक्टरेट तथा कानून की परीक्षाएं उत्तीर्ण की और भारत लौट आए। महाराज बड़ौदा ने उन्हें अपना सचिव नियुक्त किया, लेकिन वहां छुआछूत और भेदभाव के अपमान को सहन न कर पाने के कारण पद छोड़कर मुंबई में अध्यापन कार्य में लग गए। इसके बाद बाबा साहेब ने वकालत शुरु की। उन्होंने अस्पृश्यता के विरुद्ध संघर्ष करने का संकल्प लेते हुए साप्ताहिक पत्रिका मूक नायक का प्रकाशन शुरु किया। इस पत्रिका में दलितों की दशा और कल्याण के बारे में प्रकाशित उनके लेखों का भारतीय दलित वर्ग और शिक्षित समाज पर गहरा असर पड़ा। बाबा साहेब ने भारत में अस्पृश्य समाज के राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक स्वतंत्रता की पुरजोर वकालत की। दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान उनके भाषण से कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ बेहद प्रभातिव हुए और उनका अंबेडकर जी के साथ भोजन करना रुढ़िवादी समाज में हलचल का कारण बन गया। बाबा साहेब ने दलित वर्गों के बीच शिक्षा के प्रसार और उनके सामाजिक उत्थान के लिए बहिष्कृत हितकारिणी सभा की भी स्थापना की।
डॉ. भीमराव अंबेडकर एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने कहा था कि हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं। वे हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पकार थे। सामाजिक अन्याय, अत्याचार और असमानता के उन्मूलन के लिए उन्होंने संविधान के मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का बड़ा तोहफा भारत और उसकी जनता को सौंपा, ताकि सही अर्थों में सामाजिक लोकतंत्र, समरसता और सामाजिक समानता का सपना साकार हो सके। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में नागरिकों को प्रति देश के सकारात्मक उत्तरदायित्वों को समाहित किया गया। इनका उद्देश्य उस सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को सुनिश्चित करना है, जिसे संविधान में वर्णित मूल अधिकारों द्वारा संरक्षण प्राप्त है। डॉ. अंबेडकर ने कहा था हम जिन्हें नीति-निर्देशक सिद्धांत कहते हैं, वह सामान्यत: विधायिका और कार्यपालिका के लिए इन निर्देशों के तंत्र का ही दूसरा नाम है कि उन्हे अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किस तरह करना चाहिए। उन्होंने अपने गहन अध्ययन और उच्चकोटि की तार्किक एवं विश्लेषणात्मक क्षमता के आधार पर समाजिक बुराइयों के प्रगति आलोचनात्मक चिंतन और सटीक मूल्यांकन प्रस्तुत किया, जो कि आगे आने वाली पीढ़ी के लिए हमेशा मार्गदर्शक तथा प्रेरणा स्त्रोत के रुप में काम करता रहेगा। उनका मानना था कि सामाजिक परिवर्तन के लिए दलितों और कमजोर वर्गों के बीच शिक्षा की समुचित व्यवस्था तथा समाज में वैज्ञज्ञनिक दृष्टिकोण का होना बहुत आवश्यक है। डॉ. अंबेडकर भारतीय महिलाओं की उन्नति के लिए बडेÞ पैमाने पर प्रगतिशील कदम उठाने के पक्षधर थे।
बाबा साहेब ने हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द पर बल देते हुए कहा था कि सांप्रदायिक मुद्दे कनाडा जैसे देशों में भी हमेशा से रहे हैं, पर आज भी अगर अंगे्रज और फ्रांसीसी प्रेमभाव से एक साथ रहते हैं, तो हिंदू और मुसलमान एक साथ सौहार्द के साथ क्यों नहीं रह सकते। गांधीजी और कांग्रेस के कटु आलोचक होने के बावजूद डॉ. अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक विधिवेत्ता के रुप में थी। यही कारण है कि स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार ने उन्हें देश का प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री बनाया। 29 अगस्त 1947 को डॉ. अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए गठित संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। बाबा साहेब ने भारतीय संविधान को आकर देने के लिए भले ही पश्चिमी मॉडल का आधार लिया है, लेकिन उसकी मूल भावना विशुद्ध रुप से भारतीय है। डॉ. अंबेडकर ने संविधान के माध्यम से नागरिकों को व्यापक स्वतंत्रता की सुरक्षा दी है। इसमें धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत, हर तरह के भेदभाव पर रोक, महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के उपाय, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए स्कूलों तथा कॉलेजों में प्रवेश तथा नौकरियों और सिविल सेवाओं में आरक्षण प्रणाली की गारंटी दी गई, ताकि सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं को जड़ से मिटा कर दलित और वंचित वर्ग को हर क्षेत्र में प्रगति के लिए समान अवसर उपलब्ध कराए जा सकें।
26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा संविधान को अंगीकृत किए जाने के बाद डॉ. अंबेडकर ने अपने भाषण में कहा था कि ‘मैं महसूस करता हूं कि भारतीय संविधान साध्य और लचीला होने के बावजूद इतना मजबूत भी है कि यह देश को शांति और युद्ध दोनों समय जोड़कर रख सके। वास्तव में मैं कह सकता हूं कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था, बल्कि इसका उपयोग करने वाले की नीयत में खोट था। इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा था कि यदि मुझे लगा कि संविधान को दुरुपयोग किया जा रहा है तो इसे मैं ही सबसे पहले जलाऊंगा।’
उन्हें व्यक्ति की स्वतंत्रता में अटूट विश्वास था। वे सामाजिक स्वतंत्रता के भी प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने कहा था कि जब तक आप व्यक्तिगत और सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके लिए बेमानी है। धर्म की प्र्रकृति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा था कि मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है। कानून और व्यवस्था के बारे में उनका दृष्टिकोण अत्यंत संतुलित था, जिसकी मिसाल उनके इस कथन में मिलती है कि कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की औषधि है और जब रानीतिक शरीर बीमार पड़े, तो दवा जरुर दी जानी चाहिए। डॉ. अंबेडकर का सामाजिक, रानीतिक और आर्थिक चिंतन समतामूलक दृष्टिकोण पर आधारित था और वस्ततु: यही आज के समय की मांग भी है। समाज के वंचित वर्गों के कल्याण और उत्थान से ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानता तथा भेदभाव दूर किया जा सकता है। डॉ. अंबेडकर का विश्वास था कि आर्थिक और सामाजिक न्याय के बिना, केवल राजनीतिक आजादी से राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत नहीं किया जा सकता। प्रसन्नता की बात यह है कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 14 अप्रैल से 24 अप्रैल के बीच राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वाकांक्षी ग्रामोदय से भारत उदय अभियान संचालित करने जा रही है। इसके माध्यम से अंबेडकर जी के संकल्प को गांव-गांव और जन-जन तक ले जाकर लोगों के बीच सामाजिक समरसता, समानता और पारस्परिक सद्भाव की नई चेतना जाग्रत करने और दलितों के नायक बाबा साहेब के सपनों को साकार करने की दिशा में सार्थक पहल की जा रही है। भारतीय लोकतंत्र को आधार देने में डॉ. अंबेडकर का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। सामाजिकक न्याय के लिए प्राण-पण से संघर्ष करने वाले महापुरुष के रूप में उनका नाम भारतीय इतिहास में हमेशा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।