27 Apr 2024, 00:45:45 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- आर.के.सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।

अचानक से दुनिया के अनेक देशों में विपरीत हालातों में काम करने वाले भारतीय श्रमिकों के दुख-दर्द के संबंध में खबरें इधर कुछ ज्यादा ही आने लगी हैं। सऊदी अरब, संयुक्त राज्य अमीरत (यूएई), कतर, मलेशिया वगैरह के बाद अब खबर आ रही है, पूर्व सोवियत संघ के देश अजर-बेजान से। वहां सैकड़ों कुशल-अकुशल बिहारी मजदूरों के साथ जानवरों की तरह का व्यवहार हो रहा है। वे वहां से वापस स्वदेश आना चाह रहे हैं।  मुझे अजर-बेजान में फंसे मजदूरों के संबंधियों ने बताया कि उनके साथ उन्हें अच्छी कमाई का लालच देकर विदेश ले जाने वाली कंपनी कैदियों सरीखा व्यवहार कर रही हैं।  मामले का खुलासा तब हुआ जबकि एक श्रमिक ने वहां की स्थिति पर एक वीडियो बनाकर  अपने परिवार को भेजा।  इन सबकों पिछले साल 27 मई को गोरखपुर के एक एजेंट के माध्यम से अजर-बेजान ले जाया गया था। पिछले साल मोदी सरकार के कठिन किंतु दृढ़ प्रयासों के चलते यमन में फंसे हजारों भारतीय सुरक्षित स्वदेश लौटे पाए थे।

भारतीयों के निकालने के लिए नेवी और एयरफोर्स ने आॅपरेशन राहत चलाया था। दरअसल विदेशों में काम करने वाले भारतीय मजदूरों का मसला बड़ा गंभीर और जटिल है। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई की यात्रा पर गए थे। उधर उन्होंने वहां के नेताओं से भारतीय श्रमिकों के संबंध में भी बात की थी। वहां पर लाखों भारतीय कुशल-अकुशल श्रमिक काम कर रहे हैं  प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद अपने भारतीय मजदूरों की खराब हालात में सुधार शुरू हुआ।  इस लिहाज से यूएई सरकार से लगातार बातचीत करनी होगी।  भारतीय मजदूरों को अरब देशों में कामकाज करवाने के लिए लाया तो जाता है पर इन्हें वहां पर न्यूनतम वेतन, मेडिकल और इंश्योरेंस जैसी  सुविधाएं नहीं मिल पाती।

यूपीए सरकार के दौर में विदेश राज्य मंत्री ई.अहमद से खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय श्रमिकों के शोषण के संबंध में संसद में एक बार सवाल पूछा गया। मंत्री जी का जरा जवाब सुन लीजिए। ई.अहमद ने बताया, ‘अनुमान है कि लगभग 6 मिलियन भारतीय खाड़ी क्षेत्र में रहते हैं एवं वहां पर कार्य करते हैं। भारत सरकार को खाड़ी देशों में भारतीय कामगारों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं से संबंधित शिकायतें प्राप्त होती हैं। भारत सरकार ने खाड़ी देशों में अपने मिशनों के माध्यम से भारतीय कामगारों के अधिकारों की रक्षा करने एवं कामगारों के शोषण संबंधी समस्याओं का निराकरण करने हेतु कई उपाय एवं पहल की हैं। जब भी शिकायतें प्राप्त होती है, तो शिकायतों का सौहार्दपूर्ण हल निकालने पर सहमति बनाने की दृष्टि से मिशन द्वारा प्राथमिकता आधार पर संबंधित नियोक्ताओं और अथवा स्थानीय प्राधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाया जाता है।’  इतने लचर और सरकारी उत्तर को पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि पहले की सरकारों का प्रवासी भारतीय मजदूरों के हितों को लेकर कितना ठंडा रुख रहा है। अजीब बात है कि एक तरफ तो देश को विदेशों में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों से भारी-भरकम विदेशी मुद्रा मिल रही है, दूसरी तरफ देश इनको लेकर संवेदनहीन बना हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशों में काम करने वाले श्रमिकों से भारत को साल 2014 में 70 अरब डॉलर प्राप्त हुए थे जबकि चीन को 64 अरब डॉलर, फिलीपीन को 28 अरब डॉलर की राशि मिली। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे श्रमिक किस तरह से देश की सेवा कर रहे हैं। जनसंख्या के अनुपात में विदेशों में भारतीय श्रमिक ज्यादा परिश्रम कर रहे हैं।

इस बीच, कतर में भी भारतीय मजदूरों के साथ हो रहे बंधुआ मजदूरों सरीखे व्यवहार की खबरें मिल रही हैं।  कतर में साल 2022 के विश्वकप फुटबॉल आयोजन के लिए बड़े स्तर पर  निर्माण कार्य चल रहे हैं। भारतीय मजदूर निर्माण के कामों में जुटे हैं। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, एमनेस्टी इंटरनेशनल आदि ने कतर के विश्व कप आयोजन और तैयारियों की रोशनी में एक रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में प्रवासी भारतीय मजदूरों की मौतों पर सवाल उठाए गए हैं। भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से उसने कहा है कि पिछले कुछ समय में 289 भारतीय कामगारों की कतर में मौत हुई है। दरअसल कतर श्रम कानूनों की घोर अनदेखी कर रहा है, जिसका फायदा निर्माण कार्य में लगी कंपनियां उठा रही हैं और वे भारत से आए मजदूरों का शोषण कर रही हैं।    भारत विश्व की एक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है। इस आलोक में भारत को अपने नागरिकों के साथ देश से बाहर होने वाले खराब व्यवहार को कदापि सहन नहीं करना चाहिए। हमें सख्ती से उन सभी देशों की सरकारों से बात करनी होगी जहां पर भारतीय मजदूर परेशान हैं। यमन से जिस तरह से भारतीयों को निकाला गया उससे यह धारणा तो ध्वस्त हो चुकी है कि सरकार प्रवासी भारतीय श्रमिकों को लेकर कोई सरोकार नहीं रखती।

मुझे वे दौर भी याद हैं जब ईस्ट अफ्रीकी देश युगांडा से हजारों भारतवंशियों को वहां के नरभक्षी राष्ट्रपति ईदी अमीन ने खदेड़ दिया था। हालांकि अनेकों दशकों से युगांडा में बसे भारतीय मूल के लोग वहां की अर्थव्यवस्था की प्राण और आत्मा थे। तब भी हमारी सरकार ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया था ताकि भारतीयों के हकों की रक्षा हो सके।  उन्हें  कनाडा और ब्रिटेन अमरीका और नीदरलैंड में शरण मिली पर हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे।  निस्संदेह हम अपने नागरिकों और भारतीय मूल के विश्वभर में फैले हुए भारतवंशियों के हकों के लिए किसी देश पर आक्रमण नहीं कर सकते, पर उनके हक में खड़े तो हो ही सकते हैं। आखिर भारत की ताकत तो भारतीयों और भारतवंशियों से ही बनती है। अपनी हालिया सऊदी अरब की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां पर काम करने वाले मजदूरों के एक दल के साथ भोजन तक किया। बेशक इससे ये संदेश तो यही गया कि मोदी सरकार प्रवासी भारतीय श्रमिकों के साथ खड़ी है। 
 

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