27 Apr 2024, 09:15:31 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-अवधेश कुमार
-समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


बाबा रामदेव काफी दिनों बाद मीडिया की सुर्खियां बने हैं। कई मीडिया खासकर अंग्रेजी समाचार चैनलों में यह खबर चली है कि रामदेव उनका सिर काटेंगे जो भारत माता की जय नहीं बोलेगा या भारत माता की जय का विरोध करेगा। क्या स्वामी रामदेव के पास इतनी अक्ल नहीं है कि ऐसे बयान का क्या असर हो सकता है? किसी भी मामले में हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता है। जो कोई भी हिंसा की बात करता है उसका विरोध होना चाहिए ताकि दूसरा कोई उससे प्रेरणा लेकर वैसा ही न करने लगे। किंतु स्वामी रामदेव ने यह नहीं कहा है कि वो सिर काट लेंगे। भारत माता की जय का विरोध करने वालों के बारे में उनका बयान यह है कि हम कानून का सम्मान करते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कितनों का सिर काट देते। साफ है कि जानबूझकर बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है। बतंगड़ बनाने वालों की सोच क्या है वे क्या चाहते हैं यह शायद अब बताने की आवश्यकता भी नहीं। देश इन लोगों का अच्छी तरह पहचानने लगा है। वास्तव में स्वामी रामदेव के बयान का मतलब चह है कि गुस्सा तो हमारे मन में है, पर कानून का पालन करने के कारण हम शांत हैं। इसका दूसरा अर्थ यह हुआ कि हम अपना गुस्सा दूसरे ढंग से प्रकट करें जिसमें हिंसा न हो।

यह मानना भी गलत होगा कि केवल स्वामी रामदेव अकेले ऐसा कहने या सोचने वाले हैं। आप भारत माता की जय मामले पर आम लोगों को यह कहते हुए सुन सकते हैं कि इतना गुस्सा आता है कि मन करता है गोली मार देते। कुछ यह कहेंगे कि ऐेसे लोगों के लिए तो कानून बनना चाहिए ताकि सजा मिले, उसको सीधे फांसी पर चढ़ा दिया जाए या उनको देश निकाला दिया जाए। रामदेव के बयान को अकेले किसी एक व्यक्ति का बयान क्यों मान लिया वैसे भी यह अच्छी बात है कि देशभक्ति को लेकर इस तरह के खुलकर बयान आ रहे हैं।

मीडिया में आलोचना करने से इस भावना को रोका नहीं जा सकता। उल्टे इसकी प्रतिक्रिया में लोगों का गुस्सा और बढ़ता है। लोग पूछते हैं कि रामदेव ने गलत क्या कहा? फिर आप रामदेव की आलोचना करिए और जो लोग भारत माता की जय को आरएसस और भाजपा का सांप्रदायिक एजेंडा घोषित करते हैं उनको यूं ही छोड़ दीजिए। उनकी आलोचना नहीं हो, उनका विरोध न हो तो समाज अपने तरीके से इसका रास्ता निकालेगा। सवाल है कि भारत माता की जय से आपत्ति क्यों प्रकट की जानी चाहिए? किसी को भारत माता की जय बोलने में समस्या क्यों होनी चाहिए? जो भारत माता की जय नहीं बोलते उनको किस श्रेणी का भारतीय मानना चाहिए? आप महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बयान देख लीजिए। अगर वो भारत माता की जय के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी कुर्बान करने की बात कर रहे हैं भले इसकी नौबत न आए या वे न करें लेकिन इसकी तो प्रशंसा होनी चाहिए।

देवेंद्र फडणवीस ने वही कहा है जो एक देशभक्त को ऐसे मामले पर कहना चाहिए। आखिर कोई भी पद  देशभक्ति के सामने तुच्छ लगे यह भावना अगर नेताओं में पैदा हो तो इससे बेहतर बात क्या हो सकती है।  विडंबना देखिए कि जब दारुल उलुम देवबंद ने बाजाब्ता जलसा बुलाकर भारत माता की जय के खिलाफ फतवा जारी किया तो इसकी उतनी लानत मलानत नहीं हुई जितनी स्वामी रामदेव या देवेंद्र फडणवीस के बयानों की हो रही है। क्यों? यही तो एकपक्षीयता है। अनेक मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों ने पहले कहा कि भारत माता की जय बोलना कहीं से इस्लाम विरुद्ध नहीं है। फिर देवबंद के सामने ऐसी क्या आपात स्थिति पैदा हो गई कि उसने बाजाब्ता बैठक बुलाकर इसे इस्लाम के खिलाफ घोषित कर दिया?  आखिर ओवैसी को किसने कहा था कि आप भारत माता की जय बोलो ही? संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने तो यही कहा था आज की पीढ़ी को भारत माता की जय बोलना सिखाने की आवश्यकता है क्योंकि वह ऐसा करता नहीं। जितना विरोध स्वामी रामदेव और देवेंद्र फडणवीस के बयान का हो रहा है उसका शतांश भी ओवैसी का नहीं हुआ। जितना बड़ा मुद्दा रामदेव और फडणवीस के बयानों को बनाया गया है उतना बड़ा ओवैसी का नहीं बना क्यों? इसके खिलाफ समाज के बड़े वर्ग के अंदर गुस्सा पैदा होता है। यह तो भारत की सहिष्णु संस्कार है कि कुछ अनहोनी नहीं होती अन्यथा इन भंगिमाओं से आम आदमी के अंदर खीझ और क्रोध पैदा हो रहा है। इसे समझने की आवश्यकता है। आज रामदेव ने बोला है। हो सकता है कल आपको हजारों रामदेव ऐसा बोलने वाले दिख जाएं। वस्तुत: ऐसा न हो इसका उपाय करना आवश्यक है। इसका एक उपाय यह है कि जो लोग अपनी राजनीति या सांप्रदायिक सोच के लिए भारत माता की जय का विरोध कर रहे हैं, इसे अनर्गल तरीके से किसी मजहब के खिलाफ साबित कर रहे हैं या फिर इसे भाजपा एवं आरएसएस के सांप्रदायिक एजेंडा का अंग मानकर इसको महत्वहीन बनाने पर तुले हैं उनका पुरजोर विरोध हो, उनकी लानत मलानत की जाए। जावेद अख्तर भी मुसलमान हैं और वो कहते हैं मैं बार-बार भारत माता की जय कहूंगा क्योंकि ये हमारा कर्तव्य नहीं अधिकार है। ऐसे लाखों मुसलमानों को खड़ा किया जा सकता है। इसका अभियान क्यों न चलाया जाए। अभी प्रधानमंत्री की सउदी अरब यात्रा के दौरान मुसलमान पुरुष और महिलाआें ने खुलकर भारत माता की जय के नारे लगाए। तो क्या देवबंदी उलेमा उनको इस्लाम से बाहर कर देंगे? ऐसा नहीं हो सकता। आखिर मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थान मक्का और मदीना सउदी अरब में ही है। वहां से भारत माता की जय की आवाज निकलने का महत्व आसानी से समझा जा सकता है।  वास्तव में इस भाव को विस्तारित करने और ताकत देने की जरुरत है। अब यह कैसे हो इस पर जरूर विचार होना चाहिए। मीडिया भी संभलकर ऐसे मामले में अपनी भूमिका निभाए।
 

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