27 Apr 2024, 00:14:58 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

पैरेंट्स अपनी ओर से भरसक कोशिश कर रहे हैं कि वह अपनी युवा और किशोर संतान-चाहे वह बेटा हो या बेटी के मित्र बनें। ऐसे उनके वह ऐसे मित्र बनें कि उनका सुख-दुख बांट सकें।  उनके साथ जो भी घटनाएं होती हैं उन सबको बच्चे पैरेंट्स के साथ शेअर करें, जिससे उनके मन में उठने वाले किसी भी प्रकार के द्वंद्व तथा विचारों के झंझावत को वह अपने अनुभवों के आधार पर तथा उनके प्रति आसीम स्नेह से भरी सहानुभूति से समाधान कर सकें तथा उन्हें सही परामर्श दे सकें।

आज का जमाना बच्चों और पैरेंट्स की दूरी का नहीं रह गया है। अभिभावकों में से दोनों ही मां और पिता उच्च शिक्षित अथवा शिक्षित व जागरूक और सतर्क हो गए हैं। उन्हें आधुनिक गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी है। हैरी पॉटर से लेकर बच्चों के पसंद के कार्टून कैरेक्टर्स और मूवीज (फिल्मों) के बारे में वह अपने बच्चों (यहां युवा व किशोर बच्चों की ही बात हो रही है) से सब विषयों पर बात कर सकते हैं। पैरेंट्स की यह पुरजोर  व ईमानदार कोशिश जारी रहती है कि ऐसा कोई जानकारी का कोना छूट न जाए जिस पर उनके बच्चे बात करें पर वह इससे अनभिज्ञ हों। स्पोर्ट्स की गतिविधियों की जानकारी वह इसलिए रखते हैं कि उनके बच्चों की रुचि बैडमिंटन, क्रिकेट, फुटबॉल आदि में है। इंटरनेट पर बच्चे सक्रिय हैं तो  पैरेंट्स भी पीछे नहीं हैं।

इतनी सब मेहनत और मशक्कत के बावजूद पैरेंट्स तब हक्के-बक्के रह जाते हैं जब उनकी युवा बेटी या बेटा आत्महत्या कर लेते हैं। यह दुर्घटना जितना उन्हें बच्चों के इस प्रकार चले जाने से आघात पहुंचाती है उससे भी बढ़कर वह इसके कारण ठगे से रह जाते हंै कि आखिर उनसे कहां चूक हो गई। यह कैसे हो गया कि जिस बच्चे को वह अपने इतने करीब मानकर यह समझ रहे थे कि वह उनसे अपना हर प्रकार का दु:ख-दर्द बांटता है पर, दरअसल वह इसका छलावा करता है। अपने भीतर की उथल-पुथल को वह अपने पैरेंट्स के साथ नहीं बांटता, तभी तो आत्महत्या करने के हर क्षण को वह रोजमर्रा की सहजता व स्वभाविकता से जीकर  इतना भयंकर कदम उठा लेता है।

तब बताइए! उन पैरेंट्स को कैसा लगता होगा कि वह तो इतने प्रयासों और बातों के बाद भी अपने बच्चे के दोस्त नहीं बन पाए। एक ऐसा दोस्त जिसे उन पर पूरा विश्वास होता और इसी विश्वास के कारण अपने भीतर  उमड़ते-घुमड़ते सवालों का जवाब वह उन्हीं के साथ बैठाकर पाता। उसे पूरी तरह यह इत्मिनान होता कि वह जिन उलझनों से घिरकर इतना बेचेन हो उठा है उनका हल तो मां हो या पापा अथवा दोनों के साथ मिल-बैठकर अवश्य मिल जाएगा। वह उसके दोस्त ही नहीं हमदर्द भी हैं और उन्हीं की छत्रछाया में बैठकर यदि वह आज तक ठंडक पाता रहा है तो अब भी वही छाया उसे किसी भी मुसीबत से बचा लेगी।

आजकल पैरेंटिंग की बहुत बातें होती हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? जब पैरेंट्स बनते हैं तो प्रकृति स्वयं ही अपना रोल प्रारंभ कर देती है। पता ही नहीं चलता कि कितनी बातें और किस तरह का व्यवहार स्वयं ही मां और पिता में होने लगता है। उनके व्यक्तित्व में संवेदनाओं और भावनाओं का ज्वार उमड़ने लगता है। उनके लिए किसी प्रशिक्षण की जरूरत नहीं पड़ती। आजकल इस तरह की बातें करके पैरेंट्स को ही कठघरे में खड़ा कर देती हैं। बच्चे आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी हो गए हैं। उन्हें अपने अलावा कुछ नहीं दिखता। उनकी मांगें और उनकी पूर्ति व उनके लिए संपन्नता व सुख-सुविधाएं जुटाना उन्हें और भी विशिष्ट समझने के अवसर देती है। बच्चों के पालन-पोषण में यदि संस्कारों को भी शामिल कर लिया जाए तो शायद उन्हें अपने पैरेंट्स का वह आघात और दु:ख समझ में आ जाए जो उन्हें अपनी स्वार्थी सोच के कारण आत्महत्या करने के लिए उकसाता है। केवल दोस्त बनने की कोशिश नहीं करते रहना चाहिए बल्कि इसके स्थान पर उन्हें अपना सम्मान व आदर और श्रेष्ठ समझने के संस्कार दें।
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