26 Apr 2024, 14:56:27 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

मनोवैज्ञानिक इस बात को लेकर बहुत चिंतित और परेशान हैं कि आज के समय में वैवाहिक संबंध क्यों नहीं टिकते? उनमें ऐसा क्या हो गया है कि जिस उत्साह व उमंग के साथ विवाह किया जाता है, वह तो नहीं बना रहता, बल्कि बात यहां तक बढ़ जाती है कि एक-दूसरे पर आरोप लगाए जाते हैं दुनियाभर की एक-दूसरे के प्रति शिकायतों का पुलिंदा खोला जाता है और नौबत यहां तक पहुंचती है कि एक-दूसरे की उपस्थिति को बर्दाशत तक नहीं किया जाता।

ये दो स्वस्थ मानसिकता वाले दो व्यक्तियों का मिलन तो नहीं कहा जा सकता। इस बात को एक अरसा हो गया है, जब केवल चाय की टेÑ पर देखा-देखी के बाद रिश्ते तय हो जाते थे और उससे भी पहले माता-पिता ही इन  शादी-विवाहों को तय कर देते थे। पर, वैवाहिक संबंध में न तो दरार आती और न ही विवाह संबंधों को तोड़ने के लिए याचिका लगाकर न्यायालय के दरवाजे खटखटाए जाते थे। किसी परिवार के लिए बहुत ही असम्मानजनक बात होती कि उनके बेटे या बेटियों (विशेषकर बेटों की बात है, बेटियां तो इस बारे में सोच भी नहीं सकती थीं) के वैवाहिक संबंध टूट गए। आजकल तो होड़-सी लगी हुई है कि नव-दंपतियों में कौन पहल करता है और कौन पहले जाकर तलाक लेने की कोशिश करता है।

ऐसा क्यों हो रहा है? तब खोजबीन शुरू हुई और तरह-तरह के सर्वेक्षण किए जाने लगे। एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि आजकल इन वैवाहिक संबंधों में बंधने वाले एक-दूसरे से बहुत सारी अपेक्षाएं करने लगे हैं। सुंदर हो, इस अपेक्षा के साथ-साथ और बहुत अपेक्षाएं जुड़ने लगीं। वह जीवनसाथी सोशल हो। उसे पार्टियों और अन्य सामाजिक संबंधों में उठना-बैठना आए। वह घर को ऐसे चमकाकर रखे और गृह-सज्जा ऐसी करे कि कोई कला पारखी भी दांतों तले अंगुली दबा ले। वह एक बढ़िया शैफ (रसोईगीरी) करने वाली हो। पुरुष घर में होकर दिलचस्पी ले। उसे घूमने-फिरने का शौक हो। उसे महंगी से महंगी खरीदारी में रुचि हो। कितनी सारी और अपेक्षाओं की लंबी सूची बनाई जा सकती है, जिनको अगर लिखा या बताया जाए तो शायद पृष्ठ कम पड़ जाएं। जब इतनी सारी अपेक्षाएं हों, तब साथ न रह पाने की कई वजहें बन जाती हैं। वैसे तो एक ही अपेक्षा पूरी न होने पर तनातनी का वह कारण बन सकती है, पर यहां तो अपेक्षाओं को लंबी लिस्ट है इसलिए इनको लेकर तो साथ न रहने की इन्हें ठोस वजहें बनाकर संबंध तोड़ने की नौबत आ जाती है।

प्राय: इन अपेक्षाओं को मन में लेकर ग्रंथि बना ली जाती है और सबसे बड़ी ये अपेक्षा मुख्य हो जाती है कि दूसरा इनके लिए बदल जाए। यह बदलाव तो बहुत कठिन होता है। विवाह से पहले वर्षों तक कई आदतों और निश्चित व्यवहार करने वाला या वाली एकाएक कैसे बदल सकते हैं। बदलाव तो धीरे-धीरे आ सकता है, पर इन नवविवाहितों में इतना धैर्य कहां कि वे इस बदलाव की प्रतीक्षा करें। यदि वैवाहिक संबंधों के प्रति विश्वास है, वे उन्हें बनाए रखने के इच्छुक हैं या इन संबंधों के महत्व को समझते हैं तो मनोवैज्ञानिकों की इस बात को अपनाना और मानना पड़ेगा कि जीवनसाथी को केवल साधारण व सहज व्यक्ति मानें। उस पर अपेक्षाओं का बोझ न लादें। विवाह बंधन में बंधने वाले आज के युवा कम से कम इतनी सजगता तो दिखा सकते हैं।
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