- आर.के.सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।
श्री श्री रविशंकर का तीन-दिवसीय विश्व संस्कृति उत्सव पर जिस तरह से तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी ताकतों द्वारा हंगामा खड़ा किया गया, उससे देश का बहुसंख्यक तबका निराश जरूर है। साथ ही, उत्सव को बेवजह विवादों में लाने में मीडिया का भी खासकर विदेशी पूंजी वाले मीडिया का भी बड़ा रोल रहा। यह बहुत दुखद था कि उत्सव के कारण यमुना नदी केबाढ़ग्रस्त इन क्षेत्र के कथित नुकसान और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की प्रतिक्रिया की रिपोर्टिंग करते वक्त मीडिया ने ‘आर्ट आफ लिविंग फाउंडेशन’ पर लगातार प्रहार करना जारी रखा। इस बात पर हैरानी होती है कि यमुना के रिवरबेड पर हुए पूर्व के निमार्णों को मीडिया ने किस प्रकार कवर किया था! यमुना नदी के अत्यधिक प्रदूषण- यमुना के रिवरबेड पर हुए असंख्य अनधिकृत निमार्णों को प्रकाश में लाने के लिए मीडिया ने क्या किया था? पूरा कॉमनवेल्थ विलेज यमुना के रिवरबेड पर ही बना था। तो अभी ही हंगामा क्यों? क्या श्री श्री रविशंकर पर निशाना साधा जा रहा है? क्या यह एकतरफा कवरेज आध्यात्मिकता और एक हिंदू गुरु के प्रति पूर्वाग्रह है? इस सवाल का जवाब उन सबको देना होगा जो श्रीश्री के उत्सव की आलोचना कर रहे थे।
श्रीश्री के उत्सव में कमी निकालने वाले भूल गए कि पिछले साल केरल में पम्पा नदी के किनारे एशिया का सबसे बड़ा ईसाई सम्मेलन हुआ था, जो एक सप्ताह तक चला। कई सौ एकड़ फसलों को राज्य सरकार ने नष्ट करवा दिया था। तब सभी सेकुलर नेता खामोश थे। यहां तक कि न्यूज चैनल भी इस मुद्दे पर एकदम खामोश रहे। यह पवित्र नदी केरल की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक है। तब किसी ने नदी के रिवरबेड में आयोजन और उसके नुकसान की आंशका के मद्देनजर कोई सवाल नहीं खड़ा किया। इसी तरह से ग्रीस के विश्वप्रसिद्ध संगीतकार ‘यान्नी’ दुनिया के सभी आश्चर्यों के प्रांगण में अपना शो करना चाहते थे और उन्होंने सभी जगह किया भी। इसी कड़ी में उन्हें 1997 में आगरा में ताजमहल के ठीक बगल में यमुना नदी के खादर में ही शो करने की इजाजत मिल गई। उस समय भी सेना ने यमुना पर चार पुल बनाए थे। तब भी सेकुलर जमात और मीडिया ने खामोशी की मोती चादर ओढ़ ली थी। मजेदार तथ्य है कि पम्ाां नदी की सफाई में भी श्रीश्री के ‘आर्ट आॅफ लिविंग फाउंडेशन’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और कुछ प्रभावशाली व्यापारियों ने उनके इस काम का विरोध भी किया था, क्योंकि इससे उनके हित प्रभावित हो रहे थे। बहुत खेद की बात है कि ऐसे व्यक्ति और उसके संगठन पर ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का आरोप चस्पां किया जा रहा है।
दिल्ली में आज यमुना की स्थिति क्या है, सबको पता है। शहर भर के कचरे और उद्योगों के रासायनिक अवशिष्ट ने उसे गंदे नाले में तब्दील कर दिया है। उसमे बीओडी यानी बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड जीरो पर पहुंच गया है। इसका अर्थ यह है कि यमुना में कोई जीव जिंदा रह ही नहीं सकता। न तो इसका पानी पीने लायक है और न ही फसलों की सिंचाई के लिए उपयुक्त है। यह विडंबना ही है कि इस यमुना नदी के इकोलॉजी के नुकसान को लेकर विश्व संस्कृति उत्सव पर सवाल खड़े किए। ‘आर्ट आॅफ लिविंग फाउंडेशन’ की निंदा महज सीमित जानकारी के आधार पर होती रही। यह उम्मीद थी कि श्रीश्री और उत्सव पर हल्ला बोलने वाले निष्पक्षता बरतेंगे। यह भी उम्मीद थी कि श्रीश्री रविशंकर तथा ‘आर्ट आॅफ लिविंग फाउंडेशन’ को संदेह का लाभ दिया जाएगा या कम से कम उनके द्वारा दशकों से किए गए पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण कार्यों को ध्यान में रखा जाएगा। श्रीश्री रविशंकर को करीब से जानने वालों को मालूम है कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में वास्तव में बहुत ही ठोस और जमीनी कार्य किए हैं। उनके कार्यों की निष्पक्षता से अवलोकन करने की जरूरत थी। एक आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए निरंतर काम किया है।
पर्यावरण केप्रति उनकी अथक प्रतिबद्धता को असंख्य लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से देखा है। उनके मार्गदर्शन में ‘आर्ट आॅफ लिविंग फाउंडेशन’ने कर्नाटक में कई नदियों जैसे कुमुदवती, अर्कावती, वेदवती और पलार नदी तथा तमिलनाडु में नगानदी तथा महाराष्ट्र में घरनी, तेरना, बेनीतुरा व जवारजा नदी कोनया जीवन प्रदान किया है।इन सब उपलब्धियों केबावजूद, ऐसा लगता है कि पर्यावरणविद् के रूप में श्रीश्री रविशंकर की भूमिका को नकार दिया है। वे पूरी दुनिया में करीब एक करोड़ वृक्ष लगाने के बड़े काम को भी कर रहे हैं अपने साथियों के साथ। ये कार्य वे संयुक्त राष्ट्र मिलेनियम डवलपमेंट प्रोग्राम के साथ मिल कर रहे हैं। अभी तक इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि इस उत्सव ने यमुना के रिवरबेड को कोई स्थाई नुकसान पहुंचाया है। फिर भी ऐसा लग रहा कि एक वर्ग ने अपनी राय पहले ही कायम कर ली है और आरोपों की निष्पक्ष जांच के पहले ही श्री श्री के आयोजन की निंदा शुरू कर दी। श्रीश्री एक राष्ट्रीय धरोहर हैं। वह एक ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने बार-बार और हर बार मानवीय भावनाओं के उत्थान के लिए बिना थके काम किया है। यह बहुत दुखद है कि एक ऐसे आयोजन का समर्थन करने की बजाय उसके बारे में नकरात्मक बातें की गईं और उसकी राह में बाधाएं खड़ी की गईं। आज के समय में जब हिंसा सबसे विकृत स्वरूप में अपना सिर उठाए खड़ी है और आतंकवाद हमारी दहलीज पर खड़ा है, जैसा कि सिर्फ कुछ माह पूर्व हमने पेरिस के बाटाक्लेन थियेटर पर हमले के रूप में देखा था- श्रीश्री रविशंकर ने यह प्रदर्शित करने के लिए मंच प्रदान किया कि विविध पृष्ठभूमियों के लोग अपनी भिन्नताओं का उत्सव मना सकते हैं और प्रत्येक मानव में एकात्मकता का अनुभव कर सकते हैं तथा शांति का संदेश फैला सकते हैं। यही उनका संदेश है। हमेशा उनका यही संदेश रहा है- एकात्मकता का संदेश।