- आर.के.सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।
संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा ने रीयल एस्टेट बिल को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही ये उम्मीद बंधी है कि अब देश के रीयल एस्टेट सेक्टर में फैली सड़ांध और लूट बंद होगी। अब रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण की स्थापना हो जाएगी है। विधेयक का लक्ष्य रियल एस्टेट उद्योग को नियमित करना और प्रमोटरों के घोटालों से संपत्ति खरीदारों के हितों की रक्षा करना है। मैं खुद राज्यसभा में मौजूद था जब इस पर सदन में बहस हो रही थी। सारे सदन की राय थी कि देश के रीयल एस्टेट सेक्टर में फैली अव्यवस्था को तुरंत दूर किया जाए। इस विधेयक के राज्यसभा में पारित होने के बाद अब बिल्डरों को तय समय सीमा में फ्लैट अपने ग्राहकों को देने होंगे। अब वे ग्राहकों को लंबे समय तक परेशान नहीं कर सकेंगे। इसके अलवा प्रॉपर्टी एजेंटों का रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी में पंजीकरण अनिवार्य होगा। इस विधेयक में इस बात की भी व्यवस्था है कि हाउसिंग प्रोजेक्ट्स के जल्दी क्लीयरेंस के लिए सिंगल विंडो अब इस विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद बिल्डरों को अपनी परियोजनाएं समय पर पूरी करने के लिए एक अलग बैंक खाते में निर्धारित धनराशि जमा करनी होगी।
कानून का उल्लंघन करने वाले बिल्डरों पर जुर्माना भी लगेगा। मेरे पास लगातार सारे देश से बिल्डरों के ग्राहकों को परेशान करने को लेकर शिकायतें आती थीं। मुझे तो लगता था कि इस सारे क्षेत्र में भारी गड़बड़ है। बहरहाल, अब इस विधेयक के पारित होने के बाद रीयल एस्टेट क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ेगा जिससे सबके लिए आवास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा। रीयल एस्टेट सेक्टर लगभग अनियमित रहा हैं। इसमें बिल्डरों की कोई जवाबदेह नहीं रही है। हां, अब माना जा सकता है कि रीयल एस्टेट सेक्टर में जवाबदेही आएगी और ग्राहकों के हितों को देखा जाएगा। रीयल एस्टेट कंपनियों को ग्राहकों के पक्ष में खड़ा होना होगा। मुझे कुछ समय पहले एक प्रमुख रीयल एस्टेट एडवाइजरी कंपनी का सीईओ बता रहा था कि रीयल एस्टेट कंपनियां 300 से 500 प्रतिशत के मर्जिन पर काम करती हैं। अब जरा देख लीजिए कि इन हालातों में बेचारा ग्राहक कहां जाएगा। ये अपने विज्ञापनों पर बहुत मोटा बजट रखती हैं। अगर ये अपने घरों के दाम तर्कसंगत तरीके से तय करें तो घरों के दाम सीमाओं में ही रहेंगे। उन्हें सामान्य नौकरीपेशा इनसान भी खरीदने की हालत में रहेगा। दिल्ली से सटे एनसीआर में एक्टिव बिल्डरों ने तो अंधेर मचा कर रखी थी। ये वादा करने के बाद भी अपने कस्टमर्स को समय पर घर नहीं दे रहे थे।
मैं नहीं कहता कि सारे खराब है। पर ज्यादातर का कामकाज पारदर्शी नहीं है। एनसीआर में ज्यादातर प्रोजेक्ट की डिलवरी में 19 से 25 महीनों की देरी हो रही है। फरीदाबाद में 25 महीने, गाजियाबाद में 19 महीनें,ग्रेटर नोएडा में 24 महीने और गुड़गांव में 22 महीने की देरी से काम हो रहा है। जाहिर है, यह सारी स्थिति उन तमाम लोगों के लिए बेहद कष्टदायी है,जो अपने घर की डिलवरी का इंतजार कर रहे हैं। कमोबेश यही हाल सारे देश का है। समय की मांग है कि बिल्डर बिरादरी सस्ते घर बनाने पर अपना फोकस रखे। ये विज्ञापनों पर बहुत मोटा खर्च करते हैं। अब तो इन्हें अपने प्रोजेक्ट वक्त पर पूरे करने होंगे। देरी के कारण लाखों लोगों को दिक्कत हुई है। अफसोस कि देश के हाऊसिंग सेक्टर में अभी सस्ते घर बनाने की तरफ ठोस पहल नहीं हो रही। हां, बातें जरूर हो रही हैं। आप खुद सोचिए कि क्या अब ठीकठाक नौकरी पेशा करने वाले इनसान मेट्रो या टियर टू या थ्री शहर में घर बनाने की हालत में है ? लगभग नहीं। यह सवाल काफी मौजूं है, खासकर इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आजकल सस्ते घरों पर चर्चा और बहस खूब होने लगी है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि ‘अफोर्डेबल हाउसिंग’ शब्द सुनने में बहुत अच्छा लगता है। पर सस्ते घर बनाने वाले बिल्डर कहां हैं? और, कहां हैं बैंक?
इसका उत्तर नकारात्मक ही मिलेगा। सरकार को अब अफोर्डेबल हाउसिंग को गति देने लिए पर्याप्त जमीन उपलब्ध करवानी होगी। क्योंकि अगर बिल्डरों को सस्ती जमीन उपलब्ध करवा दी गई तो वे फिर मंहगे घर नहीं बेच सकेंगे। बेशक, हमारे इधर अफोर्डेबल हाऊसिंग को गति देने के लिए जितनी गंभीरता दिखाई जानी चाहिए थी,उसका अभाव ही दिखा है। हालांकि अब हालात सुधरने की उम्मीद पैदा हुई है। दुर्भाग्यवश उस इनसान के लिए स्पेस सिकुड़ता जा रहा है,जिसकी आर्थिक हालत पतली है। रीयल एस्टेट सेक्टर के सभी स्टेक होल्डर्स को एक बीएचके के भी घर बनाने होंगे। बिल्डर बिरादरी तो सिर्फ लक्जरी फ्लैट्स का निर्माण करना चाहते हैं। कारण ये है कि इसमें मर्जिन ज्यादा है। और हाऊसिंग सेक्टर की बात करते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की अनदेखी नहीं की जा सकती। जाहिर तौर पर हरेक घर लेना वाला वहां पर घर लेने को उत्सुक रहता है, जहां पर इंफास्ट्रक्चर बेहतर होता है। यानी जहां पर सड़कें,स्कूल,यातायात व्यवस्था कालेज,अस्पताल पहले से होते हैं। अगर एनसीआर की ही बात करें तो एक बात साफ है कि यहां से पचास किलोमीटर दूर भी घर लेने वाले जाना पसंद नहीं करते। वजह बताने की जरूरत नहीं है। भारत में अफोर्डेबल और लक्जरी दोनों ही तरह के घरों के कस्टमर मौजूद है। अगर बिल्डर बिरादरी की नीयत साफ रहे तो उन्हें ग्राहकों का मिलना कभी कठिन नहीं होगा। पर आमतौर पर ग्राहकों के हक के लिए बहुत सोचने वाले नहीं मिलते। रीयल एस्टेट फर्म भी मुनाफे से हटकर कुछ नहीं सोचती। बातें भले ही लंबी-चौड़ी क्यों न कर लें। बहरहाल, रीयल एस्टेट सेक्टर में फैले कोढ़ को दूर करने की एक पहल हो चुकी है। अब मानकर चलिए कि इस सेक्टर में स्थितियां सुधरेंगी।