-वीना नागपाल
समाचार चैनल पर दिखाया जा रहा था कि बीस हजार शादियां होंगी। यह आंकड़ा तो केवल देश की राजधानी दिल्ली का है। पूरे देश में न जाने कितने विवाह आयोजित होंगे। कितने युवक-युवतियां शादी के बंधन में बंध जाएंगे। कुछ ज्योतिषाचार्यों ने बताया है कि आने वाले माहों में शादियों का मुहूर्त नहीं है, इसलिए ही शायद विवाह के इस मुहूर्त में इतना बड़ा हंगामा होने जा रहा है।
पता नहीं इन शादियों में इतने बैंडबाजे वाले व घोड़ियों वाले कैसे आ पाएंगे। हमारे यहां यह तो तय है कि बिना बड़े ताम-झाम के शादियां हो ही नहीं सकतीं। यह दो लोगों के बीच गिने-चुने आमंत्रित अतिथियों के बीच होने वाला आयोजन नहीं होता बल्कि जब तक भीड़ न आए दंपत्तियों को आशीर्वाद देने तब तक विवाह का कार्यक्रम पूरा नहीं माना जाता। पर, एक बात बार-बार संदेह में डालती है। जब देशभर में इतने उत्साह व आनंद में डूबकर शादियां होती हैं तब बाद में उनके टूटने तथा वैवाहिक संबंध विच्छेद होने की नौबत क्यों आती है? क्यों यह समाचार आते हैं कि फलां युवती दहेज की मांग किए जाने पर इतनी त्रस्त हुई या उसे इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने फांसी लगा ली या जहर पी लिया था। आजकल तो ऐसा भी होने लगा है कि विवाह के कुछ समय बाद ही कोई युवती अपने पीहर लौट आती है और लाख मान-मनोव्वल के बाद भी दोबारा जाने का नाम नहीं लेती व ससुराल पक्ष पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगा देती है। ऐसे परिवारों की संख्या भी बढ़ रही है जो अपने घर लाई गई वधू के व्यवहार से न केवल त्रस्त हुए हैं बल्कि उन्हें समाज में अपमानित भी होना पड़ा है।
समझ में नहीं आता कि इतने बैंडबाजे बजवाने के बावजूद और माथे पर सेहरा बांधे युवक और दूसरी और ब्यूटी पार्लर से इन दिनों के लिए विशेष रूप से शृंगार करवाने वाली युवती इतने बदल कैसे जाते हैं कि उन्हें एक-दूसरे की उपस्थिति तक सहन नहीं होती। वधू के पिता से लाखों रुपए ऐंठने की मंशा रखने वाला युवक किस मानसिकता के तहत अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेता है और वचन देता है। दूसरी और भारी-भरकम लहंगे और चुनरी ओढ़कर मंच पर पूरे साजो-शृंगार कर सजी-धजी युवती किस सोच के तहत वहां बधाइयां लेती रहती है और बाद में दो दिन भी ससुराल में काट नहीं पाती और कठोर से कठोर लांछन लगाकर अलग होने की मंशा रखती है।
विवाहों के यह कथाकथित प्रदर्शन भरे आयोजनों के पीछे विवाह का मूल भाव खोता जा रहा है। दिल्ली में होने वाली बीस हजार शादियां अपने विवाह के पवित्र बंधन को पहचानें और इसके महत्व को समझें। जितनी मेहनत और प्लानिंग इनके ताम-झाम में लगाई जाती है उतना समपर्ण वैवाहिक संबंधों को बनाए रखने में दें। जरूरी यह नहीं कि विवाह हो गया, जरूरी यह है कि विवाह संस्था के महत्व को समझा गया और इसमें अपने वचनों द्वारा ली गई बातों का स्मरण हमेशा रखा गया। सुखद स्थिति तो यही है।
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