-विष्णुगुप्त
विश्लेषक
अगर आप कम्युनिस्टों को देशभक्त मानते हैं, अगर आप कम्युनिस्टों को शांति का प्रतीक मानते हैं, अगर आप कम्युनिस्टों को देश की संस्कृति के रक्षक समझते हैं, अगर आप कम्युनिस्टों को भारत की एकता व अखंडता के प्रतीक मानते हैं, तो आपको सच का आईना दिखाना चाहूंगा। सच के आईने में आपकी सोच बदल जाएगी, आपको यह पता चल जाएगा कि आखिर कम्युनिस्टों की यह दुर्गति क्यों हुई? सिर्फ आपको निष्पक्ष होना होगा, किसी वाद से प्रभावित नहीं होना होगा, सभी वादों से मुक्त होना होगा, तथ्यो का विश्लेषण करने और स्वीकार करने की क्षमता आपके अंदर होनी चाहिए। कम्युनिस्टों की देश के साथ गद्दारी का इतिहास तो आजादी की लड़ाई से ही शुरू हो जाती है, आजादी की लड़ाई महात्मा गांधी के हाथों में थी, महात्मा गांधी देश की आजादी के आंदोलन के नायक थे, दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर उन्होंने यह देखा कि देश की जनता भूखमरी की शिकार है, इससे महात्मा गांधी मर्माहत हुए थे,उन्होंने अपने कपड़े उतार कर लंगोटी धारण कर ली थी।
उस महात्मा गांधी को कम्युनिस्टों ने कहा था ये महात्मा गांधी अगं्रेजो का दलाल और एजेंट है, लंगोटी धारण करना सिर्फ नौटंकी है। महात्मा गांधी की लंगोटी में कम्युनिस्टों ने समाजवाद नहीं देखा था, कम्युनिस्टों को महात्मा गांधी की लगोटी साम्राज्यवाद की प्रतीक लगती थी, कम्युनिस्ट सिर्फ अपनी महंगी सिगरेट-सिगार, महंगी टाई और डिजाइनदार कुर्ते-पायजामे में ही समाजवाद देखते थे। अगर कम्युनिस्टों ने गांधी की लंगोटी में समाजवाद देख लिया होता तो कम्युनिस्टों की यह दुर्गति नहीं हुई होती। सबसे बड़ी बात यह है कि कम्युनिस्टों ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था। महात्मा गांधी ने 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का श्रीगणेश कर अंग्रेजी शासन पर निर्णायक चाबुक चलाया था। कम्युनिस्टों ने आज तक यह स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि उन्होंने 1842 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध क्यों किया था। कम्युनिस्टों का सबसे बड़ा हिंसक-वीभत्स रुझान तो 1962 में सामना आया था, आज तक उसपर कम्युनिस्ट मुंह छिपाए रखते हैं, इनके पास कोई जवाब नहीं होता है, कोई जवाब मांगता है, कोई इन्हें कुछ और कहता है, कोई इन्हें सच्चा देशभक्त मानने से इनकार करता है तब ये हिंसक होने से परहेज नहीं करते हैं।
कम्युनिस्ट पार्टियों ने 1962 में चीन के तानाशाह माओत्से तुंग द्वारा भारत पर किए गए हमले का समर्थन किया था, चीन की पागल, विस्तारवादी, उपनिवेशवादी, साम्राज्यवादी सेना द्वारा हमारे पांच हजार सैनिकों के कत्लेआम और हमारी 90 हजार वर्ग मिल भूमि कब्जाने पर कम्युनिस्टों ने खुशियां मनाई थी, असम सहित कई जगहों पर चीनी सेना के समर्थन में बैनर लगाए गए थे, चीन के तानाशाह और आक्रमणकारी माओत्से तुंग को कम्युनिस्टों ने जवाहर लाल नेहरू की जगह भारत का प्रधानमंत्री कहा था। कम्युनिस्टों की मानसिकता थी कि भारत पर कब्जा करने के बाद माओत्से तुंग भारत पर कम्युनिस्ट-तानाशाही राज कायम कर उन्हें सौंप देंगे। सिर्फ घिनौनी बात यहीं तक सीमित नहीं थी। कम्युनिस्टों ने सामरिक कारखाने में हड़ताल करवा दी थी, इसलिए कि भारतीय सैनिकों को हथियार और बारूद की आपूर्ति बाधित हो जाए और भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों के हाथों बेमौत मारे जाएं । दुनिया के इतिहास में यह पहली घटना थी जब युद्ध के समय अपने ही सैनिकों को हथियार और बारूद की आपूर्ति हड़ताल कर रोकी गई हो। सीपीएम आज तक यह नहीं कहती कि चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया था और माओत्से तुंग आक्रमणकारी था।
कारगिल युद्ध के दौरान कम्युनिस्टों ने अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान समर्थन रैली निकाली थी और भारतीय सैनिकों की जवाबी कार्रवाई रोकने के लिए नारेबाजी की थी। हिटलर रहा है कम्युनिस्टों का प्रेरणास्रोत। इंदिरा गांधी के अधिनायकवाद का सीपीआई ने समर्थन किया था। कम्युनिस्टों ने इंदिरा गांधी के मुखबिर बनकर इमरजेंसी विरोधी लोगों को जेल भिजवाया था। अफजल गुरु इनका वर्तमान में प्रेरणास्रोत हैं। अफजल गुरु कौन था? सुप्रीम कोर्ट तक उसे आतंकवादी माना और फांसी की सजा दी थी। अफजल गुरु ने अपने लाइव इंटरव्यू में स्वयं को आतंकवादी कहा था, स्वयं को आतंकवाद की खौफनाक घटनाओं का मास्टर मांइड होने का दावा किया था, अफजल गुरु का यह टीवी लाइव साक्षात्कार नवीन कुमार नामक टीवी पत्रकार ने लिया था। कम्युनिस्टों को इस देश की जनता ही सही राह दिखाएगी।