26 Apr 2024, 07:58:39 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-पीयूष द्विवेदी 
कितनी बड़ी और क्रूर विडंबना है कि एक तरफ जिस जम्मू-कश्मीर सीमा की सुरक्षा के लिए देश के दस जवान सियाचिन की बर्फ में दबकर अपनी जान गंवा देते हैं, वहीं दूसरी तरफ उनकी शहादत के कुछ रोज बाद ही देश के एक तथाकथित प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में उसी कश्मीर की आजादी, भारत की बर्बादी और आतंकी अफजल गुरु के समर्थन जैसे देश विरोधी नारे लगने लगते हैं। दरअसल पूरा मामला कुछ यूं है कि विगत 10 फरवरी को जेएनयू कैंपस के कुछ दलित, अल्पसंख्यक और कश्मीरी विद्यार्थियों ने संसद हमले के फांसी पर लटकाए जा चुके आतंकी गुनाहगार अफजल गुरु की तीसरी बरसी पर एक सभा का आयोजन किया गया, जिसका अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा कड़ा विरोध जताते हुए इस संबंध में प्रशासन से शिकायत की गई। स्वाभाविक रूप से प्रशासन द्वारा उन छात्रों के इस देश विरोधी कृत्य पर रोक लगा दी गई। बस फिर क्या था!
 

उन विद्यार्थियों द्वारा प्रशासन के निर्णय के विरोध के नाम पर न केवल हुड़दंग शुरू कर दिया गया, बल्कि कश्मीर की आजादी और भारत की बर्बादी के नारे भी लगाए जाने लगे। कश्मीर मांगे आजादी, कश्मीर की आजादी  तक जंग रहेगी, भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जैसे देश विरोधी नारे लगा रहे इन छात्रों का जब एबीवीपी के छात्रों ने जेएनयू  छात्रसंघ के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में विरोध किया तो न केवल उनके खिलाफ भी नारे लगाए गए, बल्कि कट्टा आदि हथियार दिखाकर उन्हें धमकाया भी गया। अब प्राप्त खबरों के अनुसार, नारे लगाने वाले उन छात्रों का यह कहना तो और भी चकित करता है कि संविधान द्वारा मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत ही उन्होंने आतंकी अफजल गुरु और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के एक संस्थापक मकबूल बट की याद में उस साभा का आयोजन किया था और यदि एबीवीपी ने प्रशासन से कहकर उसपर रोक नहीं लगवाई होती तो वे हंगामा नहीं करते।

अर्थात यह कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उन्हें यदि देश विरोधी गतिविधियों को  करने दिया जाता तो वे ये हंगामा नहीं होता। अब इन छात्रों को कौन समझाए कि जिस संविधान ने उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकार दिए हैं, उसीने बतौर देश के नागरिक उनके लिए कुछ मौलिक कर्तव्य भी निर्धारित किए हैं और उन्हीं कर्तव्यों में से एक राष्ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखना भी है, जिसका वे पालन नहीं कर रहे। अब संविधान के अधिकार अपनाएं और कर्तव्यों को छोड़ दें, ऐसे दोहरे मानदंड तो कतई स्वीकार्य नहीं हैं। इनका एक विरोधाभास यह है कि जिस संविधान द्वारा दिए गए एक अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दम पर ये छात्र भारत की बर्बादी के नारे जैसी देश विरोधी गतिविधियां तक संचालित करने की हिम्मत दिखा रहे हैं, उसी संविधान की एक कार्यस्थली यानी संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु का समर्थन भी कर रहे हैं। हालांकि ये पहली बार नहीं है जब जेएनयू के छात्रों पर देशविरोधी हरकतें करने का आरोप लगा है। अभी हाल ही में जेएनयू के वामपंथी छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाकर बेहद अपमानजनक और भद्दे नारे लगाए थे।

30  जनवरी को वामपंथी छात्र संगठन आईसा और केवाईएस के छात्र हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की मौत को लेकर दिल्ली में आरएसएस दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। तब इनपर पुलिस ने कार्रवाई की थी तो उसे इन्होने अभिव्यक्ति के हनन से लेकर जाने क्या-क्या बताया था।  स्पष्ट है कि इन छात्रों का विरोध पूरी तरह से तर्क और विवेक से हीन और मृतप्राय हो चुकी अपनी वाम विचारधारा को चर्चा में लाने के एजेंडे पर आधारित है। यह सर्वविदित है कि जेएनयू वामपंथियों का गढ़ रहा है और फिलवक्त देश में वही एक ऐसी जगह है जहां वामी समुदाय का कुछ अस्तित्व भी है, अन्यथा पूरे देश में इस विचारधारा को छात्र स्तर से लेकर शासन के स्तर तक मतदाताओं द्वारा पूरी तरह से खारिज किया जा चुका है। और अब तो जेएनयू में भी इनकी सत्ता में सेंध लगने लगी हैं। विगत वर्ष के छात्रसंघ चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का संयुक्त सचिव की सीट पर कब्जा करना इसको पूरी तरह से स्पष्ट करता है। कुल मिलाकर वाम विचारधारा पूरी तरह से जनता से दूर किस आॅफ लव और महिषासुर को महापुरुष बनाने जैसे जाने किन आसमानी मुद्दों में गुम है और इसी नाते वो दिन ब दिन खारिज हो रही है।

लेकिन बावजूद इसके वो स्वयं में सुधार करने की बजाय चर्चा में आने के लिए  अफजल गुरु के समर्थन, कश्मीर की आजादी और भारत की बर्बादी जैसे देशविरोधी कृत्य करने तक से पीछे नहीं हट रहे। अब उन्हें को कौन समझाए कि ऐसे कृत्यों से उनका तो कोई लाभ नहीं होगा, पर देश की छवि अवश्य खराब होगी और देश के दुश्मनों को इसे घेरने का मौका मिलेगा। इन छात्रों के इस विरोध प्रदर्शन के समर्थन में पाकिस्तान में बैठे भारत के सबसे बड़े दुश्मन हाफिज सईद का आना इसी बात का उदाहरण है। ऐसा नहीं है कि ये छात्र इन चीजों से अंजान हैं, ये सब कुछ जानते-समझते हुए भी देशविरोधी गतिविधियां करते हैं, अत: इन पर नियंत्रण का सिर्फ एक ही उपाय है कि इनपर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। दंड संहिता के अनुसार इन्हें जो सजा मिले सो मिले ही, एक कार्रवाई यह भी हो सकती है कि जेएनयू में कुछ समय के लिए छात्र राजनीति को प्रतिबंधित कर दिया जाए। इसका विरोध तो होगा, पर यह कार्रवाई कारगर बहुत होगी। इस तरह की कार्रवाईयों के जरिए ही इन भटके छात्रों को  सही रास्ते पर लाया जा सकता है।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »