26 Apr 2024, 13:45:40 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल
बच्चे इसी आवाज को सुनने के आदी बरसों तक रहे। जैसे ही किसी विषय का पीरियड प्रारंभ होता कि टीचर के क्लास रूम में घुसते ही बच्चों के अभिवादन करने के पश्चात् इस आवाज की गूंज सुनाई देती। सामान्यत: यही होता रहा है कि अपने बैग में से पुस्तक निकालकर बच्चे कहे गए पाठ तक पहुंचने के लिए किताब के पन्ने सरसराते रहते। उसके बाद या तो स्वयं शिक्षक उस पाठ के अंश पढ़ते और बीच-बीच में उसमें कहे गए वर्णन को समझाते या फिर बारी-बारी से बच्चों को पाठ पढ़ने के लिए कहते। दोनों ही स्थितियों में अधिकांश बच्चे ऊंघते रहते या उनका ध्यान इधर-उधर भटकता रहता। यदि शिक्षक पाठ की रीडिंग कर रहे होते तो बच्चों की स्थिति और भी दयनीय होती। उन्हें सर या मेडम की आवाज लोरी से कम नहीं लगती और कई बार ऊंघते हुए उनका माथा झुकता हुआ डेस्क से टकराता या फिर मेडम ही उन्हें ऊंघते हुए पकड़ लेती और जब उनके नाम की तीखी पुकार उनके कानों में पड़ती तो वह हड़बड़ाकर खड़े हो जाते और बाकी क्लास के बच्चे उन पर खिलखिला कर हंस पड़ते। इस झेंप को मिटाने में वक्त लगता। शायद अब एसा नहीं है। तकनीक ने बहुत बदलाव कर दिया है। आज के बच्चों के पास लैपटॉप हैं। वह प्राय: अपने पढ़ाए जाने वाले पाठ की जानकारी इंटरनेट पर पहले से ही एकत्रित कर लेते हैं। जब वह क्लास में जाते हैं तो वह टीचर का एकतरफा भाषण न सुनकर सब प्रश्नों व उनके उत्तरों के क्रम में टीचर से डायलॉग अर्थात संवाद करते हैं।
लगभग प्रत्येक बच्चा इंटरनेट से प्राप्त जानकारी के साथ इस तरह के ग्रुप डिस्कशन में शामिल होता है और अपने ज्ञान का विस्तार करता है। यह एक तरह से किसी विषय में उठने वाले संदेहों के समाधान का सामूहिक रूप से किया गया प्रयास होता है। सर्वेक्षण द्वारा यह पता चला है कि पारंपरिक अध्ययन की तुलना में इस तरह अध्ययन करने से क्लास में ध्यान केंद्रित कर विषय को समझने की योग्यता दोगुना हो गई है। शिक्षक द्वारा तथाकथित केवल अपने ही प्रयास से विद्यार्थियों को विषय समझाने की कोशिश का लगभग समापन हो रहा है। शिक्षक अब कक्षा का केंद्र बिंदु नहीं रहा। केवल उसकी आवाज ही क्लास में गूंजती नहीं रहती। अब इसमें बच्चों की आवाजें गूंज रही हैं, जो वास्तव में विषय को अपने तरीके से न केवल समझ  रहे हैं बल्कि अपने संदेहों का समाधन चाह रहे हैं और अपनी जिज्ञासा शांत कर रहे हैं।
क्या यह ऐसा नहीं लगता जैसा कि भारत के प्राचीन गुरुकुलों में होता था। गुरुजन एकतरफा संवाद नहीं करते थे बल्कि वह अपने शिष्यों को एक विषय देकर उन्हें उस पर सोचने व समझने के लिए कहते थे और इससे उपजी शंकाओं का समाधान करते थे। आज पूरे अमेरीका में इस तरह की शिक्षण की लहर चल पड़ी है और इसे अपनाने को लेकर बहुत हल्ला मचाया जा रहा है। उस क्लास की बात को पूरी तरह नकारा जा रहा है जहां बेचारे बैंक बेंचर्स  विषय को समझने की कोशिश करते हुए भी रह जाते हंै। आज भारतीय गुरुकुल शिक्षण पद्धित की मांग सामूहिक ज्ञान व शिक्षा का फॉर्मूला शिक्षा की नई क्रांति माना जा रहा है। काश कोई हमारी इस महान शिक्षण व्यवस्था को भी कोई श्रेय दे देता।

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