उज्जैन। भारत विविधताओं का देश है। यहां पर मान्यता है और विश्वास सबसे अलग है। हर एक प्रदेश की अपनी कुछ विशेष मान्यता है और विविधता है। ऐसे ही हमारे मध्य प्रदेश मालवा क्षेत्र में होली, धुलेंडी के पश्चात चूल पर चलने की परंपरा है। ग्राम बालोदा कोरन जो बड़नगर तहसील का एक छोटा सा गांव है यहां पर कई पीढ़ियों से धुलेंडी के पश्चात चूल पर चलने की परंपरा है। यहां स्थानीय शिव मंदिर पर धधकते अंगारों पर चलकर भगवान शिव को जल चढ़ाकर मन्नत पूरी की जाती है।
पिछले 10 वर्षों से लगातार चूल पर चल रहे हैं। बापू चौधरी और देवकरण वर्मा से बात करने पर उन्होंने बताया कि आज तक ना तो हमारे पैर जले और ना ही छाले पड़े हैं। सच्चे मन से चूल पर चलने पर पूरे साल में किए पाप चूल में जल जाते हैं। शिव मंदिर पुजारी लालूनाथ योगी से बात करने पर उन्होंने बताया कि कई पीढ़ियों से यह परंपरा जीवित है और इसी आस्था और विश्वास में आसपास के गांव से अपार भीड़ चूल देखने के लिए पहुंचती है।
क्या है चूल
मंदिर के मुख्य द्वार के सामने 9 फीट लंबा 2 फीट चौड़ा और 2 फीट गहरा गड्ढा खोदते हैं जिसमें लकड़ी जलाकर अंगारे तैयार किए जाते हैं जिस पर मन्नतधारी चलकर भगवान को जल चढ़ाते हैं।
यह है धार्मिक मान्यता
ऐसी मान्यता है कि चूल का आयोजन करने से गांव में रोगों का प्रकोप नहीं आता है और प्राकृतिक आपदा भी नहीं आती है। चूल पर चलने वाला श्रद्धालु बीमारियों एव रोगों से भी मुक्त रहता है।
अंगारों पर चलने के ये हैं नियम
होली खेलने के पश्चात नहा धोकर बिना नशा किए ही चूल पर चल सकते हैं। नशा करने वाले को चूल पर चलने वाले के समीप भी नहीं आने दिया जाता है। यदि चूल चलने वाला नशे वाले व्यक्ति के संपर्क में आ जाता है तो किसी अनहोनी की आशंका में वह चूल पर नहीं चलता है। चूल चलने के लिए 24 घंटे पहले से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है।