कोलकाता। भारत के गुजरे 176 साला इतिहास के कई दुर्लभ क्षणों, यादों और घटनाओं को कैमरे में कैद करने वाला कोलकाता का ख्यात फोटो स्टूडियो ‘बोर्न एंड शेफर्ड’ अब खुद इतिहास के पन्नों में सिमट गया है। साल 1839 में फ्रांस और लंदन में व्यावसायिक फोटोग्राफी शुरू होने के ठीक एक साल बाद विलियम हावर्ड ने कलकत्ता में इस स्टूडियो को शुरू किया था।
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा अप्रैल में स्टूडियो की इमारत के अधिग्रहण के बाद इसे बंद करना पड़ा। इस स्टूडियो की सैकड़ों तस्वीरें लंदन की नेशनल पोर्ट्रट गैलेरी, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी और नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी में मौजूद हैं। इस स्टूडियो द्वारा खींची गई एक मशहूर तस्वीर रामकृष्ण परमहंस की है, जिसे स्वामी विवेकानंद के कहने पर साल 1886 में परमहंस के निधन के कुछ ही महीने पहले लिया गया था।
ऐसे बनता-बदलता गया नाम
साल 1863 में सैम्युल बोर्न और चार्ल्स शेफर्ड ने विलियम हावर्ड से हाथ मिलाया था, तब स्टूडियो का नाम ‘हावर्ड, बोर्न एंड शेफर्ड’ रखा गया। सन् 1866 में हावर्ड साझीदारी से हट गए और इसका नाम ‘बोर्न एंड शेफर्ड’ रह गया। साल 1911 में आयोजित दिल्ली दरबार के आधिकारिक फोटोग्राफर होने का गौरव इसी स्टूडियो को मिला था। नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर और मशहूर फिल्मकार सत्यजित रे यहां नियमित रूप से आते थे। गोथिक स्थापत्य शैली वाली इस स्टूडियो की चारमंजिला इमारत अब वीरान नजर आती है। सन् 1991 में लगी भयावह आग से भी इस स्टूडियो को नुकसान पहुंचा था। उस आग में स्टूडियो की पूरी लाइब्रेरी जल कर राख हो गई थी। साल 2008 में स्टूडियो ने ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों की प्रिंटिंग बंद कर दी।
बदलती तकनीक ने बदल दी नियति
स्टूडियो के मौजूदा मालिक जयंत गांधी कहते हैं, ‘हमने इसे बंद कर दिया है। अब चीजें पहले जैसी नहीं रहीं। तकनीक में काफी बदलाव आ गया है। मेरी भी उम्र हो गई है। मेरे लिए अब इसे चलाना संभव नहीं रह गया था।’ तीन दशकों तक स्टूडियो में काम करने के बाद मार्च में रिटायर हुए प्रेमशंकर गुप्ता कहते हैं, ‘कारोबार बहुत कम हो गया था। अब मोबाइल फोन और डिजिटल कैमरों के दौर में स्टूडियो आगे चलाना संभव नहीं था।’ कोलकाता के पुराने फोटोग्राफरों और साहित्य प्रेमियों ने इस स्टूडियो के बंद होने पर दुख जताया है। बुजुर्ग फोटोग्राफर निमाई घोष कहते हैं कि इस स्टूडियो में जाना उनके लिए तीर्थ पर जाने के समान था।