वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने के फैसले की घोषणा की और उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के दौरान 190 देशों के साथ किए गए इस समझौते पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है. चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की दलील देते हुए ट्रंप ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है क्योंकि इससे उद्योगों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है
फ्रांस, जर्मनी और इटनी ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि पेरिस जलवायु समझौते पर फिर से बातचीत नहीं की जा सकती। वहीं नीदरलैंड ने इसे अमेरिका के लिए ऐतिहासिक भूल बताया है। कनाडाई पीएम ने ट्रंप से बात कर फैसले पर निराशा जताई है।
क्या है पेरिस जलवायु समझौता
साल 2015 में लगभग 200 देशों के बीच पेरिस जलवायु समझौता हुआ था। इन देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने का फैसला किया था। इसके तहत ग्लोबलवॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस तक नीचे लाने का लक्ष्य रखा था जिसे बाद में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ले जाने का प्रयास है। इस समझौते के तहत ग्रीन हाउस गैसेस के उत्सर्जन में 28 फीसदी की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सितंबर 2016 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस फैसले के तहत अमेरिका को गरीब देशों को तीन बिलियन डॉलर सहायता राशि देने पर सहमति बनी थी। 4 नवंबर 2016 से यह समझौता लागू भी हो गया था।
किस देश का क्या है रुख?
- भारत इस समझौते पर अमल करता रहेगा भले ही अमेरिका इससे अलग हो जाए।
- चीन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से बचाव वैश्विक ज़िम्मेदारी है।
- रूस का कहना है कि अमेरिका के हाथ खींचने से पेरिस डील का प्रभाव घटेगा।
- ब्रिटेन ने कहा, अमेरिका से कार्बन उत्सर्जन को कम करने की अपील करेगा। स्वच्छ ऊर्जा के लिए यूरोपियन यूनियन प्रतिबद्ध है।