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खास परिस्थितियों में महिलाओं को है श्राद्ध कर्म का अधिकार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 19 2019 11:51AM | Updated Date: Sep 19 2019 11:52AM
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लखनऊ। पूर्वजों को याद करने का पखवाड़ा पितृ पक्ष में पितरों की सद्गति के लिए कुछ खास परिस्थितियों में महिलाओं को भी विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करने का अधिकार है। किवदंतियों के अनुसार श्राद्ध कर्म का दायित्व केवल पुत्र को प्राप्त है लेकिन पुत्र न/न हो तो प्रपौत्र या पौत्र श्राद्ध करने का अधिकारी है। महिलाओं को कई जगहों पर श्राद्ध करने को मनाही की जाती है। हालांकि वाल्मिकी रामायण के अनुसार स्त्रियों को भी श्राद्ध करने की बात कही गयी है। इसका प्रमाण रामायण के एक प्रसंग में सीता जी द्वारा अपने श्वसुर राजा दशरथ का श्राद्ध करने की बात कही गयी है। इसके अलावा गरूण पुराण समेत कई पुराणों में इसका वर्णन मिलता है।
 
शास्त्र का वचन है ‘‘श्राद्धयां इदम् श्राद्धम’’ अर्थात पितरों के निमित श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध कहलाता है।   धर्मसिन्धु समेत मनुस्मृति और गरुड़ पुराण आदि ग्रन्थ भी महिलाओं को पिण्डदान आदि करने का अधिकार प्रदान करते हैं। शंकराचार्यों ने भी इस प्रकार की व्यवस्थाओं को तर्क संगत इसलिए बताया है ताकि श्राÞद्ध करने की परंपरा जीवित रहे और लोग अपने पितरों को नहीं भूलें। अन्तिम संस्कार में भी महिला अपने परिवार के मृतजन को मुखाग्नि दे सकती है।
 
गरूड़ पुराण में बताया गया है कि पति, पिता या कुल में कोई पुरुष सदस्य नहीं होने या उसके होने पर भी यदि वह श्राद्ध कर्म कर पाने की स्थिति में नहीं हो तो महिला को श्राद्ध करने का अधिकार है। यदि घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा। शास्त्रों के अनुसार पितरों के परिवार में ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र अथवा पुत्र ही न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य तिलांजलि और पिंडदान करने के पात्र होते हैं।
 
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