नई दिल्ली। भारत में मस्तिष्क आघात मृत्यु तथा अक्षमता के प्रमुख कारणों में से एक है और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में यह अभी भी मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से यह उनमें शारीरिक अक्षमता का सबसे आम कारण है। स्ट्रोक मरीजों और उनकी देखभाल करने वाले परिचितों के जीवन में आशावादी बदलाव लाने की पहल के साथ, इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स ने रविवार को यहां ‘स्ट्रोक सपोर्ट ग्रुप’ के लिये एक बैठक का आयोजन किया। इस बैठक का आयोजन इस उद्देश्य से किया गया कि स्ट्रोक से बचने वाले मरीजों और उनकी देखभाल करने वाले एक-दूसरे से बातचीत कर सकें, उन्हें सही जानकारी मिले और बेहतर टिप्स लेकर वे भावनात्मक रूप से सहज महसूस कर पायें।
डॉ. पी एन रेनजेन- सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोलॉजी, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स ने इस बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि स्ट्रोक से बचने वाले 70 प्रतिशत मरीजों को बोलने में परेशानी पेश आती है। स्ट्रोक या ब्रेन अटैक एक जानलेवा स्थिति होती है, यह वह समस्या होती है जिसमें दिमाग के हिस्से को पर्याप्त रूप से ऑक्सीजन नहीं मिल पाता। मस्तिष्क की धमनी में क्लॉंटिंग की वजह से स्ट्रोक इश्चेमिक हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क में क्षति हो जाती है या फिर धमनी की दीवार के फटने की वजह से यह हैमरेजिक हो सकता है, इसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है।
लगभग 80 प्रतिशत स्ट्रोक इश्चेमिक होते हैं। स्ट्रोक जानलेवा हो सकता है, यदि मरीज को वक्त पर हॉस्पिटल ना पहुंचाया जाये।‘’ डॉ. रेनजेन ने बताया कि इश्चेमिक स्ट्रोक की स्थिति को संभालने के लिये टिशू प्लाजमिनोजेन एक्टिवेटर (टीपीए) प्रमाणिक तरीकों में से एक है, जिसमें मस्तिष्क की नस में जहां क्लॉट होता है वह घुल जाता है। इससे मस्तिष्क के उस हिस्से में रक्त का संचार पूरी तरह करने में मदद मिलती है, जोकि पहले ब्लॉक होता है। ऐसे मामलों में, जिसमें सर्जरी की जरूरत होती है, उसमें मैकेनिकल थ्रोम्बोबैक्टॉमी भी की जाती है। इस तरह के कई डिवाइसेस हैं जैसे स्टेंट रिट्राइवर्स, जिससे बंद इंट्राक्रेनियल वाहिकाओं को फिर से वेस्कुलराइज करने में मदद मिलती है। इससे इश्चेमिक स्ट्रोक के मामलों की सफलता दर को बढ़ाने में सहयोग मिलता है।‘’
उन्होंने बताया कि स्ट्रोक से बचने वाले किसी भी मरीज को देखभाल और प्यार की जरूरत होती है। उनके केयरगिवर्स को भी सलाह की जरूरत होती है कि वह किस तरह से ऐसे मरीजों का ख्याल रख सकते हैं। ऐसी स्थितियों में सपोर्ट ग्रुप्स मरीजों तथा उनके परिवार के लोगों के लिये बहुत बड़ी राहत की तरह होते हैं। स्ट्रोक इंसान को काफी अकेला कर सकता है । इस तरह के सपोर्ट ग्रुप बैठकों का आयोजन करके ‘इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स‘ का लक्ष्य इन सर्वाइवर्स और उनके केयरगिवर्स की जिंदगियो में एक सकारात्मक बदलाव लाना है।