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शीला दीक्षित बिना दौड़े ही रेस से बाहर, अब कांग्रेेस के ब्राह्मण वोट का क्या होगा?

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 17 2017 12:06PM | Updated Date: Jan 17 2017 2:04PM
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नई दिल्‍ली। उत्तरप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने आज घोषणा कर दी कि कांग्रेस के साथ गठबंधन होगा।  आजाद ने कहा कि बाकि बातें अगले 24 घंटे में तय होगी पर गठबंधन जरूर होगा। अब उत्तरप्रदेश में ये तय हो गया कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिलकर लड़ेंगे। 

कांग्रेस की मुख्यमंत्री की उम्मीदवार शीला दीक्षित का अब क्या होगा? गुलाम नबी आजाद ने घोषित कर दिया है कि गठबंधन के नेता अखिलेश यादव होंगे। इसका साफ मतलब है कि शीला  दीक्षित की अब उत्तरप्रदेश में कोई भूमिका नहीं रहेगी। पर क्या जिस ब्राह्मण वोट की खातिर शीला को चुना गया था, उसे अब कांग्रेस हासिल कर पायेगी। 

सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस गठबंधन के लिए 100 सीटों की मांग कर सकती है। पहले कांग्रेस ने कहा था कि वह राज्य की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच जल्द ही मुलाकात की संभावना भी जताई जा रही है।  

गठबंधन के लिए रास्‍ता हुआ साफ
चुनाव आयोग के फैसले के बाद समाजवादी पार्टी अब अखिलेश यादव की हो चुकी है। अखिलेश यादव शुरू से ही प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन की वकालत करते रहे हैं। पार्टी की कमान अब अखिलेश के हाथ में है और अब कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर रास्ता साफ नजर आ रहा है। बताया जाता है कि चुनाव आयोग के फैसले से पहले अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और प्रियंका गांधी के बीच बातचीत भी हो चुकी है।
 
तो हम पीछे हटने वाले नहीं हैं
कांग्रेस नेता मीम अफजल ने कहा है कि अगर यूपी की जनता के फायदे के लिए हमें सपा से गठबंधन करना है तो हम इससे पीछे नहीं हटेंगे। इससे पहले रामगोपाल यादव ने भी कहा था कि यह गठबंधन संभव है लेकिन फैसला अखिलेश ही लेंगे। अफजल ने कहा- हम यूपी की 403 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं, अगर यूपी की जनता के फायदे के लिए कुछ भी सामने आता है तो हम पीछे हटने वाले नहीं हैं। 
 
क्या कर सकते हैं मुलायम?
-  फैसले के खिलाफ कोर्ट का रुख कर सकते हैं।
- अलग चुनाव चिह्न के साथ अपने प्रत्याशी उतार सकते हैं, जिसके संकेत भी उन्होंने सोमवार को दिए।
- अखिलेश से विवाद निपटाने के और प्रयास कर सकते हैं।
- अखिलेश के प्रत्याशियों को मौन समर्थन देकर चुनाव शांति से निपटने दे सकते हैं।
 
क्‍यों जरूरी है गठबंधन? 
अखिलेश का सत्ता में वापसी करने के लिए गठबंधन एक जरूरत भी है। राज्य में कानून व्यवस्था की लचर स्थिति और सरकार के खिलाफ माहौल उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। इधर मायावती आक्रामक हैं और बीजेपी भी केंद्र में होने के कारण मजबूत स्थिति में है। बिहार में हुए महागठबंधन की तरह ही यहां भी गैर बीजेपी राजनीतिक दलों को एकजुट करने की भी कोशिशें चल रही हैं। हालांकि इसकी संभावना कम नजर आ रही है। मायावती समाजवादी पार्टी के साथ नहीं जा सकती हैं।  
 
100 सीटों की मांग कर सकती हैं कांग्रेस 
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस गठबंधन के लिए 100 सीटों की मांग कर सकती है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच जल्द ही मुलाकात की संभावना भी जताई जा रही है। इससे पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित ने कहा था वह अखिलेश यादव के लिए मुख्यमंत्री पद की दावेदारी छोड़ने में संकोच नहीं करेंगी।
 
11 फरवरी से होगी चुनाव की शुरूआत 
उत्तर प्रदेश में सात चरणों में 403 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होना है। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा चुनाव सीटों के लिए सात चरणों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जिसकी शुरुआत 11 फरवरी से होगी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का आखिरी चरण 8 मार्च को होगा।
 
इसलिए अखिलेश को मिली साइकिल 
मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी ने 46 पेज के आदेश में कहा- यह साफ है कि अखिलेश के पास संगठन, सांसदों और विधायकों का बहुमत है। अखिलेश धड़े ने 228 एमएलए में से 205 के शपथपत्र दाखिल किए थे। 
कुल 68 एमएसली में से 56, 25 सांसदों में से 15 और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 46 सदस्यों में से 28 सदस्यों के शपथपत्र भी थे। पार्टी 5731 प्रतिनिधियों में 4,400 भी अखिलेश के पक्ष में थे। मुलायम खेमे ने किसी भी सांसद या विधायक का शपथपत्र दाखिल नहीं किया था।
 
साइकिल आगे बढ़ती जाएगी
चुनाव आयोग के फैसले के बाद अखिलेश यादव ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए ट्वीट किया, साइकिल चलती जाएगी... आगे बढ़ती जाएगी..!’ इस ट्वीट के साथ उन्होंने अपने पिता के साथ अपनी फोटो भी शेयर की। पिछले दिनों लखनऊ में हुए अधिवेशन के अलावा उन्होंने चचेरे चाचा रामगोपाल यादव की तस्वीर भी साझा की।
 
यह रहा अब तक का घटनाक्रम
21 जून, 2016 : शिवपाल यादव ने माफिया से राजनेता बने मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल (कौएद) का सपा में विलय का एलान किया।
22 जून, 2016: नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश ने कौएद के विलय में महत्वूर्ण भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्रिमंडल से निकाला।
25 जून, 2016: अखिलेश की नाराजगी के बाद संसदीय बोर्ड की बैठक हुई और कौएद का विलय रद।
14 अगस्त, 2016: शिवपाल ने कहा अफसर बात नहीं सुनते, जमीनों पर कब्जे हो रहे हैं। माफिया पर कार्रवाई नहीं हुई तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे।
15 अगस्त, 2016 : मुलायम ने कहा अगर शिवपाल इस्तीफा देंगे तो पार्टी की "ऐसी-तैसी" होगी।
12 सितंबर, 2016: अखिलेश ने भ्रष्टाचार के आरोप में गायत्री प्रजापति और राजकिशोर को मंत्रिमंडल से निकाला।
13 सितंबर, 2016: अखिलेश ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटाया।
13 सितंबर, 2016: मुलायम ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के स्थान पर शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
13 सितंबर, 2016 : मुख्यमंत्री अखिलेश ने चाचा शिवपाल से तीन मंत्रालय छीन लिए।
14 सितंबर, 2016 : अखिलेश ने कहा, झगड़ा परिवार का नहीं सरकार का।
14 सितंबर, 2016: अखिलेश ने कहा- कलह की वजह बाहरी लोगों का दखल, इशारा अमर सिंह की ओर था।
15 सितंबर, 2016: शिवपाल यादव ने सभी पदों से इस्तीफा भेजा, इस्तीफा वापस हुआ।
23 अक्टूबर, 2016: मुख्यमंत्री अखिलेश ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया।
23 अक्टबूर, 2016 : मुलायम ने राम गोपाल को पार्टी से निकाला।
27 दिसंबर, 2016: शिवपाल यादव ने विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों की सूची जारी की।
29 दिसंबर, 2016: अखिलेश यादव ने 235 प्रत्याशियों की अपनी सूची जारी की।
1 जनवरी, 2017: विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।1 जनवरी, 2017: मुलायम सिंह ने रामगोपाल यादव, किरन मय नंदा, नरेश अग्रवाल को पार्टी से निकाला।
2 जनवरी, 2017: मामला चुनाव आयोग पहुंचा।
16 जनवरी, 2017: चुनाव आयोग ने साइकिल निशान व पार्टी पर अखिलेश यादव का अधिकार बताया।
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