आमतौर पर करवा चौथ व्रत पति की लंबी आयु के लिए ही किया जाता है, लेकिन यह व्रत पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे की लंबी आयु के लिए भी कर सकते हैं। क्यों? इसलिए कि पति लंबी आयु तभी आनंदपूर्वक जी सकेगा, जब वह अपनी पत्नी को लंबी आयु तक अपने साथ पाएगा।
हिंदू धर्म में पति-पत्नी का नाता सात जन्मों तक का माना जाता है। इसमें आनंद रहे, इसलिए दोनों की सेहत अच्छी होना बहुत जरूरी है। देखा जाए तो यह व्रत अमूमन महिलाएं ही करती हैं। इस व्रत में सास सूर्योदय से पूर्व अपनी बहु को सरगी के माध्यम से दूध, सेवई खिलाती है, नारियल का पानी भी पिलाती है और श्रृंगार की वस्तुएं, साड़ी, जेवर आदि करवा चौथ पर देती है। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ व्रत इस वर्ष रविवार, 8 अक्तूबर को है। गणेश जी के भक्तों को यह अच्छी तरह पता है कि रविवार और मंगलवार को पड़ने वाली चतुर्थी अंगारक चतुर्थी होती है।
8 अक्तूबर, रविवार को तृतीया तिथि 4 बजकर 58 मिनट तक है। चतुर्थी व्रत में यह नियम है कि रात में चंद्र देव को अघ्र्य देते समय चतुर्थी तिथि ही होनी चाहिए। तृतीया व चतुर्थी का योग बहुत अच्छा माना जाता है गणोश चतुर्थी में।
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इस व्रत में विवाहित महिलाएं पूरा सिंगार कर, आभूषण आदि पहन कर शिव, शिवा, गणेश, मंगल ग्रह के स्वामी देवसेनापति कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करती हैं। इस व्रत में व्रती पकवान से भरे दस करवे- मिट्टी के बने बर्तन गणोश जी के सम्मुख रखते हुए मन ही मन प्रार्थना करें- ‘करुणासिन्धु कपर्दिगणेश’ आप मुझ पर प्रसन्न हों। करवे पूजा के बाद विवाहित महिलाओं को ही बांट देने चाहिए।
निराहार रह कर दिन भर गणोश मंत्र का जाप करना चाहिए। रात्रि में चंद्र देव के उदय होने के बाद परंपरा अनुसार उनको विधिपूर्वक अघ्र्य प्रदान करें। इसके साथ ही गणोश जी और चतुर्थी माता को भी अघ्र्य देना चाहिए। यहां ध्यान रखना है कि व्रत करने वाले नमक युक्त भोजन से दूर रहें। व्रत कम से कम 12 या 16 साल तक करना चाहिए। इसके बाद उद्यापन कर सकते हैं।