दक्षिण भारत स्थित कैलाशनाथ मंदिर पल्लव कला का उत्कृष्ट नमूना है। इसके निर्माण में द्रविड़ वास्तुकला की छाप दिखती है। वास्तु के लिहाज से ये मंदिर महाबलीपुरम के समुद्रतटीय मंदिर से मिलता-जुलता है। कैलाशनाथ मंदिर को आठवीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा राजसिम्हा या नरसिंह वर्मन द्वितीय (700 से 728 ईस्वी) ने बनवाया था। मंदिर का निर्माण 658 ईस्वी में आरंभ हुआ और 705 ईस्वी में जाकर पूरा हो सका। मंदिर के अग्रभाग का निर्माण राजा के पुत्र महेंद्र वर्मन द्वितीय ने करवाया था। राजा की रुचि संगीत नृत्य और कला में काफी गहरी थी, जो इस मंदिर में परिलक्षित होती है। कई लोग ये मानते हैं कि राजसिम्हा शिव के भक्त और संत प्रवृत्ति के थे। शिव ने उनके सपने में आकर उसे मंदिर निर्माण की प्रेरणा दी थी। मंदिर में मूल आराध्य देव शिव के चारों ओर सिंहवाहिनी देवी दुर्गा, विष्णु समेत कुल 58 देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। कैलाशनाथ मंदिर परिसर के नैऋत्य कोण में बना है और परिसर की पूर्व एवं उत्तर दिशा पूरी तरह से खुली है। इस प्रकार की स्थिति वास्तु का एक अनुपम उदाहरण है। शिव पार्वती की नृत्य प्रतियोगिता : मंदिर में देवी पार्वती और शिव की नृत्य प्रतियोगिता को दीवारों पर चित्रों में दशार्या गया है। मंदिर का एकमात्र गोपुरम (प्रवेश द्वार) पूर्व दिशा में है। मंदिर के ईशान कोण में बहुत बड़ा तालाब है। मंदिर सुबह सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक खुला रहता है। वैकुंठ की गुफा: मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में एक गुफा है। यहां के पुजारी बताते हैं कि इस गुफा को अगर पार कर लेते हैं तो आप बार-बार जन्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और सीधे वैैकुंठ की प्राप्ति होती है।