पुराण कहता है -मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है।
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं है, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। यह दिन पिता और पुत्र की निकटता की शुरुआत को देखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु द्वारा असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की गई थी। उन्होंने सभी असुरों का अंत कर उनके सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। यह दिन सकारात्मकता और अच्छाईयों को अपनाने के दिन है। पुराण यह भी कहता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार कर गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी।
ज्योतिषीय आकलन
ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष 20 सेकंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति 31 दिसंबर को मनाई जाती थी। पिछले एक हजार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से यह 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फरवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी। राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसंबर को पड़ा था। मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवनकाल में यह त्यौहार 11 जनवरी को आया था।
आखिर ऐसा क्यों?
सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है। साल 2012 में यह 14 जनवरी की मध्यरात्रि में था, इसलिए उदय तिथि के अनुसार मकर संक्रांति 15 जनवरी को आई थी। दरअसल, हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल में एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। मतलब 1728 (72 गुणा 24) साल में फिर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश एक दिन की देरी से होगा और इस तरह 2080 के बाद 'मकर संक्रांति' 15 जनवरी को पड़ेगी।
संक्रांति पर दान-पुण्य
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होना प्रारंभ हो जाती है। बसंत के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारंभ होता है। इस दिन स्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति से सूर्य की गति तिल-तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान्न बनाकर एक-दूसरे का वितरित करते हुए शुभकामनाएं देकर यह त्यौहार मनाया जाता है। सुहागन स्त्रियां प्रथम संक्रांति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएं सौभाग्यवती स्त्रियों को भेंट करती हैं। बंगाल में भी इस दिन तिल दान का महत्व है।
तिल संक्रांति
देशभर में लोग मकर संक्रांति पर अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज्यादा महत्व तिल का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज भले ही न खाई जाएं, किंतु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को ‘तिल संक्रांति’ के नाम से भी पुकारा जाता है। तिल के लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी प्रकार के
पापों से मुक्त करता है, गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है। मंकर संक्रांति में जिन चीजों को खाने में शामिल किया जाता है, वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं।
दक्षिण भारत में पोंगल
तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मटूटा-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशुधन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नेवैद्य चढ़ाया जाता है।
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। कर्नाटक में इस दिन बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। नए कपड़े पहनकर लोग गन्ने, नारियल और भुने चने के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रांति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।
‘तिल-गुड़ लो, मीठा बोलो’
महाराष्ट्र में इस दिन लोग एक-दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं ‘तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला, अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं।