इतिहास पर नजर डालें तो लोगों ने हमेशा एक निर्धारित सोच के तहत ही बच्चा प्लान किया। बर्थ कंट्रोल के तरीकों का महत्व हमेशा था। हजारों वर्षों से बर्थ कंट्रोल के तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। समय के साथ बर्थ कंट्रोल के तरीकोें में बदलाव जरूर आए, लेकिन कॉन्सेट पीढी वही रहा। जैसे-जैसे विभिन्न कॉन्ट्रासेप्टिव तरीके इलाज होते रहे, उनसे जुडी भ्रांतियों ने भी जन्म लेना शुरू कर दिया। माना जाता है कि आज पीढी को सेक्स और कॉन्ट्रासेप्शन के बारे के मुकाबले ज्यादा जानकारी है। लेकिन यह मान्यता भी उतनी सही नहीं है। सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रेमा बाली की मानें तो लोगों में सेक्स के प्रति एक्सपोजर बढा है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि ज्यादातर लोगों को इस विषय की जानकारी होती है। सच तो यह है कि अब भ्रांतियां बहुत ज्यादा स्थापित हो चुकी है। डॉ. प्रेमा कहती है विभिन्न गर्भनिरोधक तरीकों से जुड़ी कई भ्रांतियां होती है इसकी वजह है जानकारी का अभाव जानकारी के स्त्रोत बढ़े है लेकिन भ्रांतियों में भी उसी दर से बढ़ोत्तरी हुई है।
स्त्री पहली बार इंटरकोर्स में प्रेग्नेंट नहीं हो सकती-
यह बात बिलकुल गलत है एक स्त्री के प्रेग्नेंट होने के चांसेज कुछ स्पेशन के अलावा हमेशा एक जैसे ही होते है। जीएक मोदी हॉस्पिटल नई दिल्ली की गायनिकोलॉजिस्ट कहती है, ओव्यूलेशन के प्रॉसेस की शुरूआत के बाद स्त्री कभी भी प्रेग्नेंट हो सकती है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इंटरकोर्स पहली बार ही नहीं। इसलिए अगर कोई सलाह दें कि पहली बार में चिंता करने की जरूरत नहीं है और आप सेफ है तो वह गलत है साथ ही यह भी जान लीजिए की कोई उम्र नहीं होती। समय के साथ इसकी संभावना कम या ज्यादा हो सकती है, लेकिन किसी उम्र को निर्धारित लिमिट कहलर गलत होगा। यदि बच्चा नहीं चाहिए तो गर्भनिरोधक के विभिन्न तरीकों के बारे में विशेषज्ञ से सलाह करें।
यदि पुरूष वजाइना के बाहर इजैकुलेट करे तो प्रेग्नेंसी नहीं होती-
यह भ्रांति काफी समय से स्थापित है, लेकिन मेडिकल साइंस इसे पूरी तरह नकारती है। इस तरीके को विड्रॉल कहा जाता है, लेकिन प्रेग्नेंसी रोकने के लिए यह भरोसेमंद तरीका नहीं है। सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान अराउज होने के बाद पुरूष प्री-इजैक्युलेट फ्लुइड इजेक्ट करते है जिसमें 300000 तक स्पर्म हो सकते है। ऐसे में विड्रॉल का यह तरीका बहुत कारगर नहीं माना जाता। इसके अलावा वजाइना के आसपान सीमन का प्रवाह भी प्रेग्नेंसी के लिहाज से रिस्की हो सकता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि यह गर्भनिरोध का कारगर तरीका है। पीरियड्स के दौरान सेक्स सेक्स से प्रेग्नेंसी नहीं होती काफी लोग इस भ्रांति पर यकीन करते है लेकिन मेडिकल साइंस इस बात को पूरी तरह नहारती है। स्त्री मासिक धर्म की किसी भी स्टेज में गर्भवती हो सकती है। पीरियड्स होने का मतलब होता है कि ओव्युलेशन का प्रॉसेस नहीं चल रहा है लेकिन जिन महिलाओं को छोटे या अनियमित धर्म की शिकायत होती है उनमें पीरियड्स के दौरान भी ओव्युलेशन को सकता है। इसके अलावा एक स्त्री के शरीर में स्पर्म पांच दिन तक जीवित रह सकते है। इसलिए अनप्रोटेक्टेड सेक्स के बाद 5 दिनों में अगर ओव्युलेशन होता है प्रेग्नेंसी की संभावना बढ़ जाती है। पीरियड्स के दौरान सेक्स के बचना चाहिए, क्योंकि इस दौरान इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
बर्थ कंट्रोल पिंल्स से कैंसर हो सकता है-
बर्थ कंट्रोल पिंल्स के साइड इफेक्ट्स हो सकते है लेकिन इसमें कैंसर हो सकता है, इस बात को अब तक स्थापित नहीं किया जा सका है। विभिन्न रिसर्चों में इसके विपरीत तथ्य सामने आए है। प्लांड पेरेंटहुड द्वारा की गई कि एक रिसर्च के अनुसार पिंल्स का प्रयोग करने वाली स्त्रियों में कैंसर विकसित होने की संभावना एक-तिहाई तक कम हो जाती है।
सेक्स के दौरान स्टैंडिंग पोजीशन ट्राई करने से गर्भधारण नहीं होता-
सेक्स पोजीशंस को लेकर हमारे समाज में कई गलत धारणाएं है, यह भी उनमें से एक है। स्पर्म बहुत तेज स्पीड से शरीर में प्रवेश करते है, इसलिए इस तरह के तरीके कारगर नहीं होते।
आॅर्गेज्म न होने से प्रेग्नेंसी नहीं होती-
ज्यादातर स्त्रियां मानती है कि अगर वे आॅर्गेज्म यानी चरम सुख से बचें तो वे प्रेग्नेंसी से भी बच सकती है। मेडिकल साइंस इस धारण को पूरी तरह नकारती है। आॅर्गेज्म का संबंध सेक्सुअल प्लेजर से होता है। प्रेग्नेंसी से इसका कोई वास्ता नहीं है। स्त्री सेक्स की क्रिया एंजॉय करती है। या नहीं, इससे उसके गर्भवती होने का कोई संबंध नहीं है। आॅर्गेज्म के बिना भी एक स्त्री सेक्सुअल संबंधों के बाद प्रेग्नेंट हो सकती है।