नई दिल्ली। गांवों में अब तक कच्चे मकानों में किसी तरह सिर छुपाने वाले गरीब अब देश के बेहतरीन तकनीकी संस्थानों द्वारा तैयार डिजाइनों, फ्लाई ऐश की ईंटों तथा बेहतर स्थानीय सामग्री से बने और प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों के बनाए आवासों में सुकून की सांस ले सकेंगे।
प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत ऐसे आवासों का निर्माण लगभग डेढ़ लाख रुपए की लागत से किया जा रहा है और दावा किया जा रहा है कि ये "सर्वोत्तम गुणवत्ता" के है। सबसे अच्छी बात यह है कि पहले ये आवास दो से तीन साल में बनते थे लेकिन अब ये निर्माण कार्य शुरु होने के चार से आठ माह के दौरान तैयार हो रहे हैं।
इन आवासों के निर्माण में उपचारित बांस का उपयोग किया जा रहा है। रासायनिक उपचार से बांस अधिक मजबूत हो जाता है और उसमें कीड़ों का प्रकोप समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही स्थानीय लकड़यिों का भी उपयोग किया जा रहा है, जो मकानों को मजबूती प्रदान कर सकें। ऐसे आवासों में प्रकाश और रसोई का भी पर्याप्त ध्यान रखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 नवंबर 2016 को उत्तर प्रदेश के आगरा से प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) योजना का शुभारंभ किया था। ये मकान निराश्रय या एक -दो कच्चे कमरे वाले घर और कच्ची छत और कच्ची दीवारों वाले घर में रहने वाले लोगों को आवंटित किए जाएंगे।
राज्य सरकारों के साथ सहयोग से मार्च, 2018 तक 51 लाख आवासों का निर्माण करने की योजना है।
वर्तमान में 33 लाख से अधिक आवासों का निर्माण विभिन्न चरणों में किया जायेगा और शेष 18 लाख अनुमति मिलने के बाद बनाए जाएंगे। इस योजना के तहत अब तक लगभग 55 हजार आवासों का निर्माण हो चुका है और लगभग 10 लाख निर्माण के अग्रिम चरण में हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बगांल, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, और झारखंड ने इस संबंध में बेहतर कार्य किया है जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिनाडु और असम से निर्माण की गति बढाने का अनुरोध किया गया है।
ग्रामीण राजमिस्त्री प्रशिक्षण कार्यक्रम महाराष्ट्र, उत्तराखंड, छत्तीसगढ, झारखंड और मध्य प्रदेश में प्रभावी रूप से चल रहा है। अन्य राज्यों में भी ग्रामीण राजमिस्त्री प्रशिक्षण कार्यक्रम में तेजी आई है। ग्रामीण विकास मंत्रालय को उम्मीद है कि वर्ष 2017-18 के दौरान 51 लाख आवासों का निर्माण पूरा हो जायेगा और 2018-19 के दौरान भी इतने ही आवासों के निर्माण हो सकेगा।