नई दिल्ली। इसरो के आगामी संचार उपग्रह जीसैट-19 और जीसैट-11 भारत के संचार क्षेत्र की दशा और दिशा बदल सकते हैं और इनके प्रक्षेपण के साथ ही डिजिटल भारत को मजबूती मिलेगी तथा ऐसी इंटरनेट सेवाएं मिलेगी जैसे कि पहले कभी नहीं मिलीं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा, जीएसएलवी-एमके थ्री-डी 1 के प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे से अधिक की उल्टी गिनती रविवार को दोपहर तीन बजकर 58 मिनट पर शुरू हुई।
इसरो श्रीहरिकोटा में भारत के रॉकेट पोर्ट से इसके प्रक्षेपण की योजना बना रहा है। एक शानदार नया रॉकेट नए वर्ग के संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए तैयार है। जीसैट-19 उपग्रह को अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद में बनाया गया है। केंद्र के निदेशक तपन मिश्रा ने इसे भारत के लिए संचार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी उपग्रह बताया है।
अगर यह प्रक्षेपण सफल रहा तो अकेला जीसैट-19 उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित पुराने किस्म के 6-7 संचार उपग्रहों के समूह के बराबर होगा। आज अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं। मिश्रा ने कहा, सही मायने में यह मेड इन इंडिया उपग्रह डिजिटल भारत को सशक्त करेगा। भारत में अभी तक सबसे ज्यादा भार ले जाने में सक्षम भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क-तृतीय (GSLV MK-3) सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा है। इसका वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है।
यह भविष्य के भारत का रॉकेट है जो निस्संदेह गैगानॉट्स या व्योमैनॉट्स संभावित नाम के भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जाएगा। जीएसएलवी एमके-तृतीय की कल्पना करने वाले पूर्व इसरो चेयरमैन के. कस्तूरीरंगन ने यह पुष्टि की कि यह भारतीयों को अंतरिक्ष में ले जाने वाला यान होगा। देश में इसका कोई और विकल्प नहीं है।
अंतरिक्ष विशेषग्यों का कहना है कि रॉकेट टैक्सियों की तरह होते हैं जिनमें उसमें बैठने वाला यात्री अहम होता है और इसलिए इस आगामी प्रक्षेपण में जब सभी की आंखें जीएसएलवी एमके-तृतीय पर लगी होंगी तो असली आकर्षण का केंद्र इसमें सवार विशिष्ट यात्री होना चाहिए। मिश्रा के अनुसार, जीएसएलवी एमके-तृतीय देश का पहला ऐसा उपग्रह है जो अंतरिक्ष आधारित प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम है।