मुंबई। वनस्पति तेल उद्योग का मानना है कि सरकार को घरेलू उद्योग और तिलहन किसानों की बेहतरी के लिए खाद्य तेलों के बढ़ते आयात पर अंकुश लगाने को लेकर ठोस कदम उठाने चाहिए। उद्योग का सुझाव है कि सरकार खाद्य तेलों का आयात कम करने और तिलहन किसानों की आय बढ़ाने के लिए आयात शुल्क को तर्कसंगत बनाने के साथ-साथ आयातित तेलों पर ऊंची दर से माल एवं सेवाकर लगा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में खाद्य तेलों का आयात घटाकर शून्य करने की बात कही है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि जिस प्रकार दलहन का आयात कम करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रेरित किया गया उसी प्रकार खाद्य तेलों के आयात को भी कम किया जा सकता है और इसके लिए किसानों को प्रेरित किया जाना चाहिए। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी खाद्य तेलों के आयात पर अंकुश लगाने पर जोर दिया है।
उद्योग का कहना है कि देश में खाद्य तेलों का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है और 2017-18 में जहां 155-156 लाख टन का आयात हुआ था वहीं 2018-19 में यह बढ़कर 162 लाख टन तक पहुंच गया। यह हर साल बढ़ रहा है। खाद्य तेल आयात बिल 70 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है और जिस गति से यह बढ़ रहा है उसे देखते हुए इसके एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाने का अनुमान है। किसानों के पास सरसों और सोयाबीन का स्टॉक अभी तक बिना बिका पड़ा है जबकि अगले कुछ महीनों में नई सोयाबीन की आवक होने लगेगी।
पंजाब ऑयल मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील जैन का कहना है कि सरकार को वास्तव में यदि घरेलू स्तर पर तिलहन उत्पादन बढ़ाना है और किसानों को उनकी उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य उपलब्ध कराना है तो सबसे पहले आयात पर अंकुश लगाना जरूरी है। जैन ने सुझाव देते हुए कहा कि सोयाबीन, सनफ्लावर, रेपसीड पर आयात शुल्क को 35 प्रतिशत से बढ़ाकर 45 प्रतिशत कर दिया जाना चाहिए। इनके रिफाइंड तेल का आयात देश में नहीं होता है।