बीजिंग/नई दिल्ली। भारत-चीन और भूटान की सीमा से जुड़े विवाद के परिप्रेक्ष्य में चीन ने गीदड़ भभकी देते भारत से सोमवार को कहा कि वह अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा करने के लिए हर आवश्यक कदम उठाने के लिए तैयार है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि भारत को सिक्किम सीमा पर अपनी सेना हटा लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत की तरह आज का चीन भी 1962 से बहुत अलग है। चीन के इस बयान को रक्षामंत्री अरुण जेटली के उस बयान की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि 2017 में भारत की स्थिति 1962 से बहुत अलग है, ठीक वैसा ही जैसा चीन के अलग हैं।
शुआंग ने कहा, पूर्व भारतीय पीएम जवाहरलाल नेहरू ने 1959 में चीन के पूर्व पीएम झोऊ एनलाई को लेटर लिखकर 1890 की साइनो-ब्रिटिश संधि पर सहमति जताई थी। मौजूदा सरकार को भी इस समझौते का सम्मान करना चाहिए। सिक्किम सेक्टर में भारतीय सेनाओं का एक्शन समझौते के साथ धोखा है। वहीं चीन के सरकारी समाचार पत्र 'ग्लोबल टाइम्स' ने चीनी विशेषज्ञों के हवाले से कहा कि भारतीय सेना के साथ तनाव के बीच चीन किसी भी सूरत में अपनी संप्रभुता की रक्षा करेगा, फिर चाहे उसे युद्ध ही क्यों न करना पड़े।
भारत की तरह 2017 का चीन भी अलग
वहीं शंघाई म्युनिसिपल सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर वांग देहुआ ने कहा, चीन भी 1962 से बहुत अलग है। वांग का कहना है, भारत 1962 से ही चीन को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानता आ रहा है। उनका कहना है यदि ऐसे ही तनाव रहा तो युद्ध के हालात भी बन सकते हैं। शंघाई इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में सेंटर फॉर एशिया-पैसिफिक स्टडीज के निदेशक जाओ गांचेंग ने कहा, दोनों पक्षों को संघर्ष या युद्ध की जगह विकास पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, दोनों के बीच संघर्ष अन्य देशों को फायदा उठाने का अवसर दे सकता है, जैसे अमेरिका को। वांग ने कहा, भारत को चीन के प्रति द्वेषपूर्ण रवैया छोड़ना चाहिए क्योंकि बेहतर संबंध दोनों पक्षों के लिए लाभप्रद हैं।
ट्रंप को खुश करने की चाल
ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि भारत पीएम नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से पहले वॉशिंगटन के समक्ष यह दृढ़ संकल्प से यह प्रदर्शित करना चाहता था कि वह चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगा सकता है। सरकारी थिंक टैंक शंघाई इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के वरिष्ठ फेलो लीयू जोंगइ ने अपने अपने लेख में कहा, मोदी ने ट्रंप के साथ अपनी मुलाकात के संबंध में दो कदम उठाए। पहला वह अमेरिका के साथ हथियारों का सौदा पक्का करना चाहते थे। दूसरा कदम अमेरिका के समक्ष भारत का चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने का दृढ़ संकल्प प्रदर्शित करना है।
भारतीय सेना का घटना से इनकार
भारतीय सेना ने सोमवार को कहा कि चीनी सेना ने उसके बंकरों को बुलडोजर से नष्ट नहीं किया। सेना ने इस बात से इनकार किया कि सीमा पर चीन के साथ जारी गतिरोध 1962 के बाद से सबसे लंबा है। सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय सेना तथा चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जवानों के बीच कोई धक्का मुक्की हुई। इससे पहले सरकार के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा था कि भारतीय बंकरों को नष्ट करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया था।
6 जून को कोई घटना नहीं हुई
प्रवक्ता ने कहा कि 6 जून को ऐसी कोई घटना नहीं हुई और विदेश मंत्रालय के उस बयान की तरफ संकेत किया, जिसमें घटना की तारीख 16 जून बताई गई थी। उन्होंने साफ किया कि विभिन्न तंत्र भारत-चीन संबंध और साथ ही दोनों सेनाओं के बीच संबंधों को काफी अच्छे से संभाल रहे हैं। प्रवक्ता ने कहा, रक्षा मंत्रालय या सेना ने इस कारण से ना तो कोई आधिकारिक बयान जारी किया और ना ही अनौपचारिक जानकारी दी कि दोनों देश मीडिया की चर्चाओं से दूर इस तरह के संवेदनशील मुद्दों से सबसे अच्छे तरीके से निपट सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस स्थिति में चूंकि कुछ घटनाएं भूटान से जुड़ी हैं, इसलिए विदेश मंत्रालय पहले ही मुद्दे पर महत्वपूर्ण जानकारी दे चुका है।