महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार इस बात का संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और इसके खिलाफ उनकी जीरो टॉलरेंस पॉलिसी है। बुधवार को बिहार की राजनीति ने हाल के दशक का दूसरा सबसे बड़ा उलटफेर देखा। पहला उलटफेर 2015 में तब जब नीतीश-लालू एक हुए और दूसरा उलटफेर बुधवार को जब नीतीश ने फिर से बीजेपी का दामन थाम लिया। नीतीश कुमार ने कई बार मोदी सरकार के कामों की तारिफ भी की। फिर चाहें वह नोटबंदी हो या सर्जिकल स्ट्राइक। आज हम आपकों बता रहे हैं कि आखिर नीतीश कुमार किन मुद्दों से बीजेपी के करीब आए और एक बार फिर उन्होंने भगवा ओढ़ लिया।
रामनाथ कोविंद का सपोर्ट
एनडीए ने बिहार के गवर्नर रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था। तब नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग जाकर कोविंद को सपोर्ट देने का एलान कर दिया था। कांग्रेस ने मीरा को बिहार की बेटी बताकर जेडीयू से सपोर्ट मांगा, लेकिन नीतीश अपने फैसले पर कायम थे। राष्ट्रपति चुनाव से पहले नीतीश मोदी के डिनर के लिए दिल्ली भी गए थे।
नोटबंदी के फैसले की तारीफ
मोदी सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी का एलान किया था। नीतीश ने केंद्र सरकार के इस फैसले को बड़ा आर्थिक सुधार बताकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था- मैं नोटबंदी का हिमायती हूं। इससे देश की अर्थव्यवस्था को बहुत फायदा होगा।
बेनामी प्रॉपर्टी वालों पर हमला
मोदी सरकार ने बेनामी प्रॉपर्टी कानून बनाया। नीतीश ने कहा था केंद्र सरकार को जल्द ही बेनामी संपत्ति पर हमला करना चाहिए। आम आदमी मेहनत करे और कालाधन वाले मौज करें, इस पर लगाम लगनी ही चाहिए।
जीएसटी के हिमायती बने
मोदी सरकार ने टैक्स व्यवस्थाओं में सुधार के लिए जीएसटी लागू कर दिया है। गैर-बीजेपी शासित कई राज्यों की सरकारें जीएसटी के विरोध में थे, लेकिन नीतीश इसके साथ खड़े हुए। उन्होंने कहा था कि मैंने हमेशा जीएसटी का सपोर्ट किया। यह देश और राज्यों के हित में है।
सर्जिकल स्ट्राइक की तारीफ
इंडियन आर्मी ने पिछले साल पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों के ठिकाने ध्वस्त किए थे। केजरीवाल, कांग्रेस समेत कई पार्टियों के नेताओं ने मोदी सरकार से इसके सबूत मांगे। तब नीतीश ने इसकी तारीफ में कहा था कि सेना ने एलओसी पर आतंकवादी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की। आर्मी को बधाई। आतंकवाद और उसे पनाह देने वालों के खिलाफ केंद्र कड़ी कार्रवाई करे। हम उसके साथ हैं।
...और ऐसे बनी थी लालू से दूरी
सीबीआई ने 5 जुलाई को लालू, राबड़ी और तेजस्वी यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। 7 जुलाई को सुबह सीबीआई ने लालू से जुड़े 12 ठिकानों पर छापे मारे थे। 2006 में जब लालू रेलमंत्री थे, तब रांची और पुरी में होटलों के टेंडर जारी करने में गड़बड़ी की गई। इसके बाद तेजस्वी के इस्तीफे की मांग उठने लगी। मामला तब गरमा गया जब नीतीश कुमार की अगुआई में इस मसले पर 11 जुलाई को जेडीयू की अहम बैठक हुई।
इससे पहले मई से ही लालू और उनके परिवार के खिलाफ 1000 करोड़ की बेनामी प्रॉपर्टी के आरोपों की इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जांच कर रहा था। मीसा और उनके पति के ठिकानों पर भी छापे मारे जा चुके थे।