मदुरई। मद्रास हाई कोर्ट ने वध के लिए पशुओं की खरीद-फरोख्त पर पाबंदी लगाने वाली केंद्र की अधिसूचना पर मंगलवार को चार हफ्तों के लिए रोक लगा दी और इस सिलसिले में दायर जनहित याचिकाओं पर जवाब मांगा है। दरअसल, याचिकाओं में यह दलील दी गई है कि इन नए नियमों के लिए पहले संसद की मंजूरी लेनी चाहिए थी।
जस्टिस एम वी मुरलीधरन और जस्टिस सी वी कार्तिकेयन की मदुरै पीठ ने दो याचिकाओं पर अंतरिम आदेश जारी किया, जिनमें कहा गया था कि नियमों को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि वे संविधान के खिलाफ हैं, परिसंघ के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं और मूल कानून-जंतु निर्ममता निवारण अधिनियम 1960 के विरोधाभासी हैं।
याचिकाकर्ताओं की यह दलील है कि अधिसूचना भोजन से जुड़ी है और इसलिए इसके लिए संसद की मंजूरी लेनी होगी, का जिक्र करते हुए जजों ने केंद्र से चार हफ्ते के अंदर जवाबी हलफनामे में जवाब देने को कहा।
केंद्र के फैसले का विरोध
कोर्ट का यह आदेश ऐसे समय आया है जब केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की राज्य सरकारें तथा कई गैर-भाजपा पार्टियां केंद्र के फैसले का विरोध कर रही हैं। प्रतिबंध के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से केरल और तमिलनाडु के कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया है कि यह लोगों की खान-पान की आदत के खिलाफ है।
कोर्ट में देंगे चुनौती: ममता
सोमवार को ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी केंद्र के फैसले के खिलाफ आवाज उठाई। ममता ने केंद्र सरकार के इस कदम को राज्यों के काम में जानबूझकर की जा रही दखलंदाजी और लोकतंत्र के खिलाफ बताया। ममता ने कहा कि ये गैरकानूनी कदम है और हम इसे कानूनी तौर पर चुनौती देंगे।
बता दें कि, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बूचड़खानों या धार्मिक उद्देश्यों के लिए पशुओं की बलि को लेकर बैल, गाय, उंट की खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी थी।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि नए प्रावधानों की अधिसूचना 23 मई को जारी की गई जब कोर्ट की छुट्टी थी। ऐसे नियमों पर संसद में चर्चा होनी और उसकी मंजूरी लेनी चाहिए। पशुओं की खरीद-फरोख्त पर पाबंदी लगाने वाले निमय संविधान के तहत मिली धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।