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मुस्लिम बोर्ड ने SC से कहा- तीन तलाक का हक महिलाओं को भी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 17 2017 10:39AM | Updated Date: May 17 2017 10:39AM
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नई दिल्‍ली। सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई के चौथे दिन मंगलवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि महिला निकाहनामे में अपनी तरफ से कुछ शर्तें भी रख सकती है। बोर्ड ने ये भी कहा कि महिला सभी रूपों में तीन तलाक कहने का हक है। बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में शादी एक समझौता है। बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के हितों और उनकी गरिमा की रक्षा के लिए निकाहनामे में कुछ खास इंतजाम करने का विकल्प खुला हुआ है।

चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ के सामने पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वैवाहिक रिश्ते में प्रवेश से पहले महिलाओं के सामने 4 विकल्प होते हैं जिनमें स्पेशल मैरेज ऐक्ट 1954 के तहत पंजीकरण का विकल्प भी शामिल है।
 
एआईएमपीएलबी  ने कहा, 'महिला भी अपने हितों के लिए निकाहनामा में इस्लामी कानून के दायरे में कुछ शर्तें रख सकती है। महिला को भी सभी रूपों में तीन तलाक कहने का हक है और अपनी गरिमा की रक्षा के लिए तलाक की सूरत में मेहर की बहुत ऊंची राशि मांगने जैसी शर्तों को शामिल करने जैसे दूसरे विकल्प भी उसके पास उपलब्ध हैं।' 
 
तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने सवाल उठाया कि जब निकाहनामे में महिला को भी तलाक देने की शक्तियां दी जाती हैं, तो उसे तीन तलाक देने की शक्ति क्यों नहीं दी जाती। 
 
इस सवाल के जवाब में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि धार्मिक विद्वानों ने इसकी मनाही की हुई है। लेकिन हम मानते हैं कि यह तलाक का बेहद अवांछनीय रूप है। हालांकि अहले हदीस में इसकी अनुमति है। मगर फिर भी हम समाज को शिक्षित कर रहे हैं और उसे इसके लिए तैयार कर रहे हैं। विमर्श हो रहा है, लेकिन हम यह नहीं चाहते कि कोई हमें बताए कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। अदालत तो इसमें बिल्कुल हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसमें संसद या विधानभाएं ही कानून बना सकती हैं। 
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