इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को तीन तलाक पर सख्त टिप्पणी करते हुए इसे मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ क्रूरता बताया। कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक और महिला अधिकारों के खिलाफ है। दो याचिकाओं की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने मामले की व्याख्या करते हुए कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है। यहां तक कि पवित्र कुरान में भी तलाक को सही नहीं माना गया है।
बता दें, कुछ महिलाओं और केंद्र सरकार ने तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती की है। इनका कहना है कि तीन तलाक लैंगिक न्याय, समानता और संविधान के खिलाफ है। हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक का समर्थन करता है। पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि किमी महिला को मारने की बजाय तलाक देना सही है। धर्म द्वारा दिए गए अधिकारों पर कोर्ट में सवाल नहीं उठाए जा सकते।
हाईकोर्ट ने बुलंदशहर की हिना और उमरबी की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। 24 वर्षीय हिना की शादी 53 साल के एक शख्स से हुई थी, जिसने उसे बाद में तलाक दे दिया। वहीं, उमरबी का पति दुबई में रहता है, जिसने उसे फोन पर तलाक दे दिया था। इसके बाद उसने अपने प्रेमिका के साथ शादी कर ली थी। जब उमरबी का पति दुबई से लौटा तो उसने हाईकोर्ट में कहा कि उसने तलाक दिया ही नहीं। उसकी पत्नी ने अपने प्रेमी से शादी करने के लिए झूठ बोला है। इस पर कोर्ट ने उसे एसएसपी के पास जाने को कहा।
हालांकि हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं को खारिज करते हुए मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और इस्लामिक विद्वान खालिद रशीद फिरंगी महली ने इसे शरियत कानून के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा- हमारे मुल्क के संविधान ने हमें अपने पर्सनल लॉ पर अमल करने की पूरी-पूरी आजादी दी है। इस वजह से हमलोग इससे मुत्तफिक नहीं है। पर्सनल लॉ बोर्ड की लीगल कमेटी इसकी स्टडी करगी।