रायबरेली। उत्तर प्रदेश के रायबरेली का मुंशीगंज स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), बच्चे के जीर्ण गुर्दा रोग के मामले में बाल चिकित्सा निरन्तर एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस का शुभारंभ करने वाला उत्तर प्रदेश का दूसरा सरकारी संस्थान बन गया है। एम्स के प्रवक्ता डॉ़ सुयश सिंह ने रविवार को बताया कि इस संस्थान ने सफलतापूर्वक अपने बाल चिकित्सा निरंतर एम्बुलेटरी पेरीटोनियल डायलिसिस (सीएपीडी) कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस संस्थान में इलाज करा रहे रोगी बच्चे को, क्रोनिक किडनी रोग जिसमे गुर्दा खराब होने का आख़िरी स्टेज का मामला पाया गया था। इस मामले में महत्वपूर्ण बात यह थी कि बच्चे के माता-पिता को बच्चे की किडनी प्रत्यारोपण की योजना बनाने से पहले उसके रखरखाव डायलिसिस आदि की भी आवश्यकता थी। इस मामले में एम्स ने सीएपीडी के लिए जाने का फैसला किया क्योंकि इतने छोटे बच्चे में हीमोडायलिसिस में कई चुनौतियां थीं। कैथेटर की शल्य चिकित्सा के बाद बच्चा लगभग 25 दिनों तक एम्स में था। एम्स ने इस अवधि का उपयोग अपने जूनियर डॉक्टर, नर्सिंग ऑफिसर, पीड़ित के माता-पिता को अस्पताल और घर पर सीएपीडी के हर पहलू के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए किया।
प्रवक्ता के अनुसार इस संस्थान ने पिछले सप्ताह में सफलतापूर्वक 5 परीक्षण किए और बीते शनिवार को बच्चे को छुट्टी दे दी तथा इस मामले में महत्वपूर्ण बात यह भी थी माता-पिता स्वतंत्र रूप से घर पर सीएपीडी जारी रखने के बारे में पूरी तरह से सहज व भिज्ञ हो गए थे। प्रवक्ता ने बताया कि गरीब माता पिता के इस रोगी बच्चे के लिए एक और महत्वपूर्ण यह बात हुई कि समय पर मुख्यमंत्री निधि जारी कर दी गई अन्यथा उसके माता-पिता इस चिकित्सा का खर्च ही वहन नहीं कर सकते थे। डॉ़ सिंह ने कहा कि उनका संस्थान उत्तर प्रदेश में बाल चिकित्सा सीएपीडी कार्यक्रम को सफलतापूर्वक शुरू करने वाला दूसरा सरकारी चिकित्सा संस्थान हो गया हैं।