निर्देशक: जोया अख्तर
कलाकार: अनिल कपूर, रणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा, फरहान अख्तर, अनुष्का शर्मा, राहुल बोस, शेफाली शाह
निर्देशक जोया अख्तर की फिल्म में जो एक बात सबसे काबिलेतारीफ होती है वह यह कि फिल्मांकन और आंखों को सुकून देने वाले दृश्यों की नजर से वह परिपूर्ण होती है। ‘दिल धड़कने दो’ की भी यह दोनों बातें आपको साफ तौर पर प्रभावित करेंगी। इस फिल्म की कहानी कही गई है एक आलीशान क्रूज (पानी के जहाज का एक प्रकार) पर और समुद्र में पानी की सजह पर चलते इस क्रूज के साथ इस फिल्म की कहानी गोते लगाती है।
कहानी:
फिल्म की कहानी एक परिवार के चार सदस्यों के इर्द गिर्द बुनी गई है जो अपनी इच्छाओं के अनुरूप जिंदगी नहीं जी पा रहे। हालांकि इस परिवार में एक पांचवा सदस्य भी है जो कि एक पालतू जानवर है। ‘दिल धड़कने दो’ की कहानी साधारण सी होते हुए भी भारी भरकम लगती है। फिल्म को तीन घंटे लगते हैं अपनी रफ्तार पकड़ने में और तब तक फिल्म का अंत ही हो जाता है वह भी एक ऐसे संदेश के साथ जिसके बारे में सबको पहले से पता है और वह यह है कि हम अपने भाई-बहन या माता-पिता को नहीं चुनते बल्कि वो हमें मिलते हैं।
फिल्म की कहानी जोया और रीमा कागती ने मिलकर लिखी है। फिल्म कई बार रोमांचक होने का प्रयास करती है लेकिन वास्तव में बनी नीरस ही रहती है। फिल्म में दिल्ली के एक अमीर परिवार की कहानी है जिसमें अनिल कपूर और शेफाली शाह ने मां-बाप का किरदार अदा किया है। इन दोनों के बीच कुछ ठीक नहीं है और दोनों एक दूसरे से असंतुष्ट हैं। उनके दो बच्चे हैं प्रियंका चोपड़ा और रणवीर सिंह जिनकी अपनी इच्छाएं हैं और अपनी परेशानियां।
अनिल (कमल मेहरा) और शेफाली (नीलम) इन सभी दुख ,परेशानियों और भावनाओं को लेकर अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाने पहुंच जाते हैं एक आलीशान क्रूज पर और वहां शुरू होता है परिवार का मेलोड्रामा। राहुल बोस (मानव) ने प्रियंका (आएशा) के पति का किरदार निभाया है लेकिन क्रूज पर प्रियंका को अपना पहला प्यार फरहान अख्तर (सनी गिल) के रूप में मिल जाता है। रणवीर (कबीर) को क्रूज पर ही बैले डांसर अनुष्का शर्मा (फराह) से प्यार हो जाता है।
फिल्म में इस परिवार का पांचवा सदस्य एक कुत्ता है जो मानवीय चरित्रों की कमियों का बड़े ध्यान से विश्लेषण करता है। इस जानवर को आमिर खान ने अपनी आवाज दी है और जावेद अख्तर ने इस चरित्र के संवाद लिखे हैं। ‘दिल धड़कने दो’ की कहानी साधारण होते हुए भी बोझिल है। कहानी फुटपाथ से आगे निकल ही नहीं पाती और समुद्र में तैरते हुए गोते लगाती है। फिल्म में इतने सारे सितारे हैं फिर भी वह अपनी अदाकारी की छाप नहीं छोड़ पाते हैं। ‘दिल धड़कने दो’ एक बड़ी सी आलीशान नाव पर तैरता भारीभरकम नीरस सा सामान है जो बस बोझ है और कुछ नहीं।