रेटिंग- 1.5 स्टार
कलाकार- कंगना रनौत, इमरान खान
निर्देशक- निखिल आडवाणी
निर्माता- सिद्धार्थ राय कपूर
गीत- कुमार
संगीत- शंकर-अहसान-लॉय
कहानी- अंशुल सिंघल, निखिल आडवाणी
मुंबई। कंगना रानाउत के प्रशंसकों की संख्या इन दिनों बढ़ी है। लेकिन ‘कट्टी बट्टी’ से इन प्रशंसकों को काफी निराशा होनेवाली है। और जहां तक इमरान खान का सवाल है उनके प्रशंसकों की संख्या इन दिनों काफी कम हो गई है। इस फिल्म के बाद इनकी संख्या में इजाफा नहीं होने वाला है।
लेकिन इन दोनों बातों के लिए जिम्मेदार कंगना और इमरान नहीं हैं, बल्कि इस फिल्म के निर्देशक निखिल अडवाणी हैं जिन्होंने एक ऐसी फिल्म बनाई है जिसकी शुरुआत तो दमदार है लेकिन जैसे ही फिल्म आगे बढ़ती है वैसे ही धीरे-धीरे इसका दम निकलने लगता है। दरअसल निर्देशक ने इसे ऐसी प्रेम कहानी बनाना चाहा है जो प्रेम-कहानी लगे ही नहीं। और यहीं फिल्म मार खा जाती है।
इसमें इमरान ने माधव ऊर्फ मैडी नाम के एक शख्स का किरदार निभाया है जो पायल (कंगना) से प्यार करता है। दोनों साथ-साथ पांच साल तक सहजीवन यानी लिव-इन रिलेशनशिप गुजारते हैं। और फिर एक दिन पायल चली जाती है। इस सदमे में मैडी तो समझ लीजिए कि मैड हो जाता है।
उसके दोस्त उसे समझाते हैं लेकिन दिल है कि मानता ही नहीं। और फ्लैशबैक के सहारे कहानी कभी पीछे मुड़ती है और कभी आगे बढ़ती है। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता है दर्शक को लगता है कि जल्दी से मामला खत्म हो तो घर चलें। पायल की जिंदगी की अपनी पेचीदगियां हैं। लेकिन उनसे दर्शक को बोरियत ही होती है।
लगता है कि निखिल अडवाणी पुराने जमाने की फिल्म निर्माण शैली से बाहर नहीं निकल पाए हैं जिसमें हीरोइन का काम हीरो के साथ प्रेम करना और कभी-कभी उसके साथ नाचना-गाना है। लेकिन इधर दर्शक और फिल्म निर्माण दोनों का मिजाज बदल रहा है।
कंगना की हाल की दो फिल्में-‘क्वीन’ और ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ नायिका प्रधान हैं और नायक की केंद्रीयता उनमें नहीं है। ‘कट्टी बट्टी’ में इमरान तो लगभग हर दृश्य में हैं। इसके बावजूद वे बांध नहीं पाते।
निर्देशक ने आज की युवा पीढ़ी की कुछ समस्याओं और अंदाज को भी दिखाया है। जैसे इसमें ‘फोसला’ कहलाने वाला एक बैंड है जिसका पूरा नाम है ‘फ्रस्ट्रेटेड वन साइडेड लवर्स एसोसिएशन’। फेसबुक और दूसरे सोशल साइटों के भी संदर्भ हैं। मकसद है फिल्म को युवा पीढ़ी से जोड़ना।
लेकिन इन चोंचलों से ज्यादा फायदा नहीं होता अगर आप ढंग की कहानी न दिखा पाएं। टॉयलेट के दृश्य भी प्रचुर मात्रा में हैं पर इससे सुगंध के एहसास नहीं होते। अंग्रेजी में कहते हैं न कि ‘ओ शिट’, तो दर्शक अगर हॉल से निकलने के बाद यह बोले तो इसका निखिल अडवाणी को बुरा नहीं मानना चाहिए।