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महाराष्ट की रानी रोटी का देशभर में है नाम

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 15 2019 1:06AM | Updated Date: Apr 15 2019 1:06AM
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मुंबई। रानी रोटी सप्लायर संजय राजू बागड़े के मुताबिक उन्होंंने 10-12 महिलाओं को इस काम के लिए नियुक्त किया है। एक महिला प्रतिदिन 350 रुपए से 700 रुपए तक कमाती है। एक किलो आटा गूंथने पर कर्मचारी महिला को 35 रुपए मजदूरी मिलती है। इतनी ही मजदूरी रोटी तैयार करने वाली महिला को भी मिलती है। एक महिला एक दिन में 10-20 किलो आटा गूंथ लेती है। रोटी बनाने वाली महिला भी पूरे दिन में इतने आटे की रोटियां तैयार कर लेती है। 1 किलो आटे से 16 रोटियां बनती हैं। ये 16 रोटियां 130-160 रुपए में बेची जाती हैं।

मांडे अब कहलाती है रानी रोटी
संतरानगरी के आसपास के हिंगना, हिंगनघाट, यवतमाल, उमरेड, कामठी, कन्हान, खापरखेड़ा आदि गांवों में महिलाएं मांडे (एक तरह से आटे का घोल) तैयार करती थीं। यही परिवार का भोजन होता था। गरीबी और बदहाली से जूझते परिवार में पेट भरने के लिए आटे को गीला कर चिक्कीनुमा बनाया जाता था। इस प्रकार आटा तैयार करने के लिए महिलाओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती तथा गीले आटे को पटक-पटककर उसमें लचीलापन लाया जाता था। इस तरह आटा तैयार करने का मकसद यह था कि मात्र एक-दो रोटी में ही व्यक्ति का पेट भर जाए तथा उसे जल्दी भूख भी न लगे। इस रोटी को चटनी, ठेचा, दाल या कच्चे टमाटर व प्याज के साथ भी खाया जा सकता था।

महिलाओं को मिला काम ,गरीबों का आहार हुआ लोकप्रिय 
घर की बुजुर्ग महिलाएं ये रोटी तैयार करती थीं। गांव से शहर में आकर बसने के बाद भी कुछ महिलाएं भोजन के रूप में यही मांडे तैयार करतीं जिससे परिजनों की भूख मिटायी जा सके। समय और रहन-सहन में परिवर्तन के साथ मांडे का शौक कुछ परिवार तक ही सीमित हो गया। उत्तर नागपुर की रानी रोटी गली में ऐसे ही कुछ परिवार हैं जो बरसों से गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। इन परिवार का यह आहार धीरे-धीरे आसपास के लोगों में भी पसंद किया जाने लगा। 
 
ब्रांड बन गई रोटी 
खान-पान के शौकीनों ने इन महिलाओं से मांडे तैयार कर उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। इसके बदले वे कुछ पैसे मेहनताने के रूप में दे दिया करते थे। पैसे मिलने लगे तो इन महिलाओं ने अधिक से अधिक लोगों को मांडे उपलब्ध कराना शुरू कर दिया। देखते-देखते यह कारोबार पूरे उत्तर नागपुर में फैल गया और अनेक लोग इन महिलाओं को आर्डर देने लगे। कुछ लोगों ने इस कारोबार को दूसरे शहरों तक पहुंचा दिया। अब तकरीबन 150 लोग दूरदराज के शहरों में रानी रोटियां सप्लाई कर रहे हैं। गांव का बरसों पुराना यह प्रोडक्ट अब उत्तर नागपुर की रानी रोटी गली का ब्रांड बन गया है। रोटी बनाने वाली महिला श्रृंखला भगत के मुताबिक उनकी दादी मांडे तैयार करती थी। उनके बाद मांडे बनाने की कला बुआजी ने सीखी। बुआजी को देख-देख कर हम लोगों ने भी मांडे बनाना सीख लिया। 
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