इंदौर। अमेरिकी वर्ल्ड चैम्पियनशिप ट्रायल्स में पांच बार की राष्ट्रीय विजेता एलिसिया मोंटानो ने 34 सप्ताह के गर्भ के दौरान 800 मीटर की दौड़ में हिस्सा लेकर दुनिया को चौंका दिया। दौड़ने का मुख्य उद्देश्य फिर से चैम्पियन बनना नहीं, बल्कि ये संदेश देना कि गर्भावस्था में दौड़ना मां और गर्भस्थ शिशु के लिए बहुत लाभकारी है। खास बात ये कि उस दौरान आयोजन स्थल का तापमान 32.13 डिग्री सेल्सियस था। इस तरह के मामले में यह तथ्य चौंकाने वाला है कि गर्भवती महिलाओं की मौत में मप्र देश में दूसरे पायदान पर है। इनकी केयर के लिए राज्य सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार सुधार कर रही और मृत्युदर कम करने के लिए भी कई योजनाएं भी लागू हैं।
भारत में गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशुओं की मृत्यु दर कम करने को लेकर केंद्र व राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही हैं। इसके बावजूद रिपोर्ट्स में आए आंकड़े चिंतनीय हैं। पिछले साल नेशनल हेल्थ मिशन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2015 में गर्भवती महिलाओं की मौत में महाराष्ट्र अव्वल रहा। इस दौरान वहां 633 महिलाओं की मौतें हुई, जबकि मप्र दूसरे नंबर पर रहा। इसी साल 113 महिलाओं की मौत हुई। इसके पहले 2014 में प्रदेश में गर्भावस्था के दौरान 109 महिलाओं की मौत हुई थी, यानी आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
ये रहे मौत के खास कारण
- समय पर डॉक्टरों का नहीं पहुंच पाना।
- इनकी केअर के लिए नियुक्त आशा कार्यकर्ताओं का पूर्ण रूप से निपुण नहीं होना है।
- प्रसूति के दौरान ज्यादा खून बहने, ब्लड प्रेशर बढ़ने, शुगर आदि भी मौत के कारण रहे।
- गर्भावस्था के दौरान प्रॉपर डाइट नहीं व जरूरी सप्लीमेंट्स नहीं मिलना है। गायनेकोलॉजिस्ट के मुताबिक सप्लीमेंट में आयरन सबसे जरूरी है।
- एक कारण समय पर अस्पताल पहुंचने में देरी भी है।
- कुछ जिलों में सोनोग्राफी व ब्लड बैंक की सुविधा नहीं होना।
- जननी सुरक्षा योजना, स्वास्थ्य बीमा योजनाएं जरूर हैं, लेकिन पूरी तरह से कारगर नहीं।
- छह माह में पांच फीसदी प्रेगनेंसी लॉस
नेशनल हेल्थ मिशन के अनुसार मप्र में छह माह में (अप्रैल 2016 से अक्टूबर 2016) 10.59 लाख महिलाएं गर्भवती हुर्इं। इनमें से पांच फीसदी प्रेगनेंसी लॉस का शिकार हुर्इं। वैसे कई बार गर्भावस्था के दौरान गर्भपात हो जाता है या किसी वजह से डॉक्टरों को करना पड़ता है। डॉक्टरों के मुताबिक प्रेगनेंसी लॉस रोकने के लिए एएनसी एमपीटी (महिला की जान बचाने के लिए गर्भपात करना) बेहतर है। कई जिलों के अस्पतालों की स्थिति अच्छी, जबकि कुछ जिलों की स्थिति काफी पिछड़ी हुई है। एक तथ्य यह कि मप्र के सभी निजी अस्पतालों में गर्भपात जीरो बताए गए, जबकि अधिकारियों का मानना है कि जीरो मार्किंग संभव नहीं है।