डिप्रेशन की वजह यह है कि आप ऐसे विचार और भावनाएं पैदा कर रहे हैं, जो आपके खिलाफ काम कर रही है, आप के लिए नहीं। ज्यादातर डिप्रेशन खुद अपने ही बनाए हुए होते हैं। बहुत कम ही लोग वास्तव में किसी रोग के कारण डिप्रेशन में होते हैं। वे कुछ नहीं कर सकते, उनका डिप्रेशन अंदर से, किसी आनुवांशिक कमजोरी या ऐसे ही किसी अन्य कारण से होता है। बाकी लगभग सभी लोगों को पागल किया जा सकता है क्योंकि स्थिर मानसिकता और पागलपन की सीमारेखा में अंतर बहुत ही पतला, महीन होता है।
जब आप गुस्सा होते हैं, तब आप इस बीच के अंतर को कम कर देते हैं। आप किसी पर पागल नहीं होते, आप बस पागलपन की ओर जा रहे होते हैं। आप किसी पर पागल नहीं हो सकते। आप बस स्थिर मानसिकता की सीमा-रेखा को कुछ समय के लिए लांघते हैं। फिर वापस आ जाते हैं। लेकिन आप हर दिन 10 मिनट, किसी पर जबरदस्त, तीव्र गुस्सा करेंगे तो 3 महीनों में आप डिप्रेशन के रोगी हो जाएंगे। यह समझना चाहिए कि अगर एक पल के लिए भी आप बीमार होते हैं तो आप बीमार ही हैं।
अपने बचपन से ही आप को घर वालों का, दूसरों का अधिकतम ध्यान तभी मिलता था, जब आप बीमार होते थे। तो आपने बचपन में ही बीमार पड़ने की कला सीख ली थी, लोग आपकी तरफ ध्यान जो देते थे। लेकिन जब आप की शादी हो गई, तब से आपने मानसिक रूप से बीमार पड़ने की कला भी सीख ली है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रोत्साहन रखें, बीमारी के लिए नहीं। मैं कहूंगा कि दुर्भाग्यवश, धरती पर होने वाली 70% बीमारियां, अलग-अलग तरीकों से, हमारी खुद की बनाई हुई होती हैं।
इन्फेक्शन के केस में भी, अगर आप अपने आपको शारीरिक और मानसिक रूप से, एक खास तरह से रखते हैं तो आप पर विषाणु और जीवाणु उस तरह का असर नहीं कर पाएंगे जैसे वे दूसरों पर करते हैं। जी हां, अगर आप अपने आपको ऐसे ढंग से रखें कि चाहे कुछ भी हो, मुझे बिना छुट्टी के अपने काम पर जाना है, तो यह संभव है। तो किसी बीमारी के लिए प्रलोभन न रखें। अगर बच्चा बीमार है तो उसे दूर से देखिए कभी भी जाकर गले लगा कर प्यार मत जताइए। उसे समझ में आएगा कि ये उसके जीवन का सबसे खराब समय है और उसे जल्दी अच्छा होना है। तो वह अच्छा हो जाएगा।