नई दिल्ली। हम बाजार से अक्सर ऐसी चीजें खरीद कर लाते हैं जो कंपनियां हमे बेचना चाहती हैं, लेकिन हमें खरीदना वह चाहिए जो हमारे लिए जरूरी हो। लेकिन ऐसा होता नहीं है और यही कारण है कि महीना खत्म होने से पहले हमारे पैसे खत्म हो जाते हैं। इस बात का खुलासा वाले नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड एच थेलर ने किया है। इनको लोगों की खर्च की आदत पर रिचर्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। इनकी रिसर्च बताती है कि पैसों के मामले में ज्यादातर लोग दिल से काम लेते हैं, जबकि जरूरत दिमाग लगाने की होती है। इनके अनुसार लोगों की खर्च की इस आदत सिर्फ अर्थशास्त्र से नहीं समझा जा सकता है बल्कि इससे जुड़ा मनोविज्ञान भी समझना बहुत ही जरूरी है।
जानें क्यों क्रेडिट कार्ड अच्छा लगता है- उनकी रिसर्च में पता चला है कि पैसे को जब हम खर्च करते हैं तो हमें खराब लगता है। यह तकलीफ तब और बढ़ जाती है, जब हम पैसा नगद रूप में खर्च करते हैं। वहीं क्रेडिट कार्ड या उधार सामान खरीदते समय यह तकलीफ कम हो जाती है। यही कारण है कि किस्तों में उधार सामान खरीदते या क्रेडिट कार्ड के जरिए खर्चा करते समय इसी कारण लोग गैर जरूरी चीजें खरीद लेते हैं। मनोविज्ञान की नजर में यदि टाइम ऑफ पेमेंट और टाइम आप परचेस को अलग-अलग कर दिया जाए पैसा खर्च करने की तकलीफ कम हो जाती है।
इसी बात का फायदा उठाती हैं कंपनियां- उधार सामान बेचने वाली कंपनियां और क्रेडिट कार्ड कंपनियां लोगों की इस कमी को जानती हैं। यह कंपनियां लोगों के स्वभाव की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर 'अभी खरीदो-बाद चुकाओ' जैसे ऑफर देकर अपना सामान बेच देती हैं। यदि लोग अपने खर्च को नियंत्रित करना चाहते हैं, तो क्रेडिट कार्ड का उपयोग कम से कम करें। इसके अलावा जिस वक्त जो सामान खरीदें, उसी समय उसका पेमेंट करने की आदत डालें। इससे गैर जरूरी सामान की खरीदारी से बचा जा सकता है।
बदलती रहती है पैसों की कीमत- बिहेवियर इकोनॉमिक्स से पता चलता है कि इंसानों के लिए पैसे का रंग अलग होता है। यही कारण है कि वेतन का पैसा किफायत से खर्च किया जाता है। वहीं बोनस या अन्य तरीके से मिले पैसों की अक्सर फिजूलखर्ची की जाती है।