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बहुत पुराना है खेल कठपुतली का

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 5 2015 2:46PM | Updated Date: May 5 2015 2:46PM
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कठपुतली  का खेल अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है, जो समस्त सभ्य संसार व्यापक रूप प्रचलित रहा है। भारत में पारंपरिक पुतली नाटकों की कथावस्तु में पौराणिक साहित्य, लोककथाएं और किवदंतियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीर-रांझा, लैला-मजनूं और शीरीं-फरहाद की कथाएं ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं। कठपुतलियां या तो लकड़ी की होती हैं या कागज की लुग्दी की। उसके शरीर के भाग इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि उनसे बंधी डोर खींचने पर वे अलग-अलग हिल सकें।
 
हमारे देश में राजस्थान की कठपुतली बहुत प्रसिद्ध हैं। यहां धागे से बांधकर कठपुतली नचाई जाती हैं। कठपुतली की सबसे खास बात यह है कि इसमें कई कलाओं का सम्मिश्रण है।  शुरू में इनका इस्तेमाल प्राचीन काल के राजा महाराजाओं की कथाओं, धार्मिक, पौराणिक आख्यानों और राजनीतिक व्यंग्यों को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता था। धीरे-धीरे इस कला का प्रसार  देशभर में  हुआ।  
 
 
उड़ीसा का 'साखी कुंदेई', आसाम का 'पुतला नाच', महाराष्ट्र का 'मालासूत्री बहुली' और कर्नाटक की 'गोम्बेयेट्टा' धागे से नचाई जाने वाली कठपुतलियों के रूप हैं। तमिलनाडु की 'बोम्मलट्टम' काफी कौशल वाली कला है, जिसमें बड़ी-बड़ी कठपुतलियां धागों और डंडों की सहायता से नचाई जाती हैं। यही कला आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी पाई जाती है। 
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