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Lifestyle

विश्व आटिज्म जागरूकता दिवस.....2 अप्रैल

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 2 2015 12:19PM | Updated Date: Apr 2 2015 12:19PM
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मुबंई। आटिज्म के प्रति लोगों को जागरूक बनाना है लक्ष्य आज विश्व आटिज्म अवेयरनेस डे है,इसे यूएनओ ने18 दिसंबर 2007 में अपनी आम सभा की बैठक में विश्व स्तर पर मनाने के लिए स्वीकार किया था। विश्व आटिज्म जागरूकता दिवस का प्रस्ताव यूएन में कतर ने रखा था और सो देशों के सदस्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। तब से लेकर 2 अप्रैल 2008 से हर साल पूरा विश्व इस दिवस को मनाता है। आटिज्म ऐसा विकार है जो कि बच्चे के बात करने और समझने की कला को प्रभावित करता है।
 
 
चिकित्सक आटिज्म को एक ऐसे व्यापक विकासात्मक विकार के रुप में वर्गीकृत करते हैं, जिसका अर्थ है कि बच्चा सामान्य बच्चों की तरह जीवन के पहलुओं को नहीं समझ सकता। ऐसे बच्चों की मुख्य समस्या होती है संचार की। आटिस्टिक बच्चे ना सिर्फ अपनी भावनाएं दूसरों की बातें समझने में भी असमर्थ होते हैं। इन्हीं कारणों से वो पढ़ाई में दूसरे बच्चों से पीछे रह जाते हैं।
 
 
 
आटिस्टिक बच्चों में कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं जैसे कि लगातार एक ही प्रकार का काम करना या प्रतिदिन के कार्य में किसी प्रकार के बदलाव को अस्वीकार करना। उन्हें मौखिक और गैर मौखिक संचार दोनों में ही समस्या आती है। ऐसे बच्चे बिल्कुल ही नहीं बोलते हैं और सिर्फ तेज आवाज पर ही प्रतिक्रिया करते हैं। कुछ आटिस्टिक बच्चे संकेतों को भी नहीं समझ पाते। 
 
 
 
आटिस्टिक बच्चों की याददाश्त होती है तेज 
 
बहुत से आटिस्टिक बच्चे थोड़ा बहुत बोल लेते हैं,लेकिन वो सामान्य बच्चों की तरह नहीं पढ़ सकते। जैसे कि वो कुछ विशेष क्षेत्रों में बोल पाते हैं ,लेकिन सभी में नहीं। कुछ आटिस्टिक बच्चों की याददाश्त बहुत अच्छी होती है,अगर उन्होंने कोई जनकारी सुनी है या कोई घटना देखी है,तो वो उन्हें लंबे समय तक याद रहती हैं। कुछ में बहुत ही महान संगीत प्रतिभा होती है और कुछ गणितीय गणना करने में बहुत तेज होते हैं। आंकड़ों से ऐसा पता चला है कि आटिज्म से प्रभावित लगभग 10 प्रतिशत बच्चों में संगीत और गणित को समझने की अधिक क्षमता होती है। 
 
 
 
आटिज्म मस्तिष्क की प्रक्रिया पर डालता है असर 
 
ऑटिज्म मस्तिष्क की उस प्रक्रिया पर असर डालता है,जिसका काम भावों,संचार और शरीर की हलचल को नियंत्रित करना होता है। कुछ आटिस्टिक बच्चों में हाथ और मस्तिष्क का बड़ा आकार भी देखने को मिलता है। ऑटिज्म सिंड्रोम डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चों में कुछ अन्य जुड़ी हुई स्थितियां भी देखने को मिलती हैं। ऑटिज्म के रोगियों को उपचार देने से पहले चिकित्सक यह जानने की कोशिश करते हैं कि बच्चे की वास्तविक समस्या क्या है। आटिज्म के रोगियों का जीवन काफी चुनौतीपूर्ण होता है। ऐसे में उन्हें प्यार व दुलार की काफी जरूरत होती है। उन्हें अपने आसपास ऐसे लोगों की जरूरत होती है जो उन्हें समझे और ऐसी स्थिति से बाहर आने में मदद करें। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चे की ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाते हैं और वे बच्चे की अनदेखी व उससे दूरी बनाने लगते हैं,जो कि बच्चे के लिए बहुत नुकसानदेह है। 
 
 
 
मनोचिकित्सक के अनुसार ऑटिज्म में ध्यान देने योग्य बातें
 
बच्चों को दुत्कारें नहीं, बल्कि उनकी ओर विशेष ध्यान दें। खेल-खेल में बच्चों के साथ नए शब्दों का प्रयोग करें। शरीरिक खेल गतिविधियों के लिए आटिज्म रोगियों को प्रोत्साहित करें। रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दों को जोड़कर बोलना सिखाएं। बच्चों को तनाव मुक्त  जगहों पर लेकर जाएं। बच्चों को खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाएं। धीरे-धीरे खेल में लोगों की संख्या को बढ़ाते जाएं। रोगियों से छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें। इसके अलावा साधारण वाक्यों का प्रयोग करें जिससे रोगी उसे समझ सके। रोगियों को पहले समझना फिर बोलना सिखाएं। यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे प्रोत्साहित करें और बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करें। बच्चों को अपनी जरूरतों को बोलने का मौका दें। यदि बच्चा बिल्कुल बोल नहीं पाए तो उसे तस्वीर की तरफ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाएं। बच्चों को घर के अलावा अन्य लोगों से नियमित रूप से मिलने का मौका दें। यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए दूसरे काम में व्यस्त रखें। गलत व्यवहार दोहराने पर बच्चों से कुछ ऐसा करवाएं जो उसे पसंद ना हो। यदि बच्चा कुछ देर गलत व्यवहार न करे तो उसे तुरंत प्रोत्साहित करें। प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी,चमकीली व ध्यान खींचने वाली चीजों का इस्तेमाल करें। अगर परेशानी ज्यादा हो तो मनोचिकित्सक द्वारा दी गई दवाओं को प्रयोग करें।
 
 
 
स्पीच थेरेपी से हो सकता है इलाज
अधिकतर चिकित्सक जो कि आटिस्टिक बच्चों की देख-रेख करते हैं वह ऐसी सलाह देते हैं कि आटिस्टिक बच्चों की जितनी जल्दी हो सके स्पीच थेरेपी की जानी चाहिए। इससे बच्चे दूसरे लोगों को समझने में और बात करने में धीरे-धीरे समर्थ होने लगते हैं। आजकल,स्पीच लैंग्वेज पैथालाजिस्ट या भाषण चिकित्सक जो कि भाषा से संबंधी समस्याओं के विशेषज्ञ हैं वो आटिज्म की चिकित्सा करते हैं। चिकित्सा के सभी चरण में स्पीच लैंग्वेज चिकित्सा सामान्यत: परिवार,स्कूल और शिक्षक का सहयोग भी लेता है। बहुत से उपकरण जैसे कि इलेक्ट्रानिक टाकर,चित्र बोर्ड और शब्दों के इस्तेमाल से ऐसे बच्चों को समझने में आसानी होती है।
 
 
 
भाषण चिकित्सा से ना केवल बच्चे की भाषा का कौशल विकसित होता है,बल्कि इससे बच्चे आसपास में रहने वालों से संबंध भी स्थापित कर पाते हैं,जैसा कि आटिस्टिक बच्चों को करने में समस्या आती है। सामान्यत: आटिज्म का पता 3 साल की उम्र से पहले लगता है। अधिकतर आटिस्टिक बच्चे बोलने में अक्षम होते हैं,लेकिन थेरेपी के शुरूआती दिनों से ही वह सामने वाले के सवालों पर प्रतिक्रिया करते हैं। शोधों से ऐसा पता चला है कि वह आटिस्टिक लोग जिनमें सुधार पाया वह अधिक समय से स्पीच थेरेपी ले रहे होते हैं। आटिज्म से ग्रस्त  रोगियों का शारीरिक विकास तो होता है,लेकिन मानसिक विकास धीमा हो जाता है। इससे पीड़ित लोग अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं। उन्हें बोलने में समस्या होती है। वे हर किसी से खुल नहीं पाते हैं। इसके आलावा वे कभी-कभी इतने उग्र हो जातें हैं कि खुद को ही चोट पहुंचा लेते हैं।
 
 

 

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